Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 36
________________ ५९ अपमानका प्रतिकार। तीव्र घृणायुक्त बात और जीवनहत्याके सम्बन्धमें उसके नैतिक आदर्शकी श्रेष्ठताका अभिमान याद आ जाता है । पर इस बातको याद करके हमारे हृदयको कुछ भी शान्ति नहीं मिलती। ___ भारतवासियोंके प्राण और अँगरेजोंके प्राण फाँसीवाली लकड़ीके अटल तराजूपर रखकर एक ही बाँटसे तौले जाते हैं, जान पड़ता है कि अँगरेज लोग इसे मन ही मन राजनैतिक कुदृष्टान्त स्वरूप समझते हैं। __ अँगरेज लोग अपने मनमें यह बात समझ सकते हैं कि हम थोड़ेसे प्रवासी जो पचीस करोड़ विदेशियोंपर शासन कर रहे हैं सो यह शासन किसके बलसे हो रहा है ? केवल अस्त्रके ही बलसे नहीं बल्कि नामके बलसे भी । इसीलिये सदा विदेशियोंके मनमें इस बातकी धारणा बनाए रखना आवश्यक है कि तुम लोगोंकी अपेक्षा हम पचीस करोड़ गुना अधिक श्रेष्ठ हैं। यदि हम इस धारणाका लेश मात्र भी उत्पन्न होने दें कि हम और तुम बराबर हैं तो इससे हमारा बल नष्ट होता है। दोनोंके बीचमें एक बहुत बड़ा परदा है। अधीन जातिके मनमें कुछ अनिर्दिष्ट आशंका और अकारण भय सैकड़ों हजारों सैनिकोंका काम करता है। भारतवासी जब यह देखते हैं कि आजतक न्यायालयमें हमारे प्राणोंके बदलेमें कभी किसी अँगरेजको प्राणत्याग नहीं करना पड़ा तब उनका वह सम्भ्रम और भी दृढ हो जाता है। वे मनमें समझते हैं कि हमारे प्राणों और किसी अँगरेजके प्राणोंमें बहुत अंतर है और इसीलिये असह्य अपमान अथवा नितान्त आत्मरक्षाके अवसरपर भी किसी अँगरेजके शरीरपर हाथ छोड़नेमें उन्हें बहुत आगा-पीछा करना पड़ता है। यह बात जोर देकर कहना कठिन है कि अँगरेजोंके मनमें इस पालिसीका ध्यान स्पष्ट अथवा अस्पष्ट रूपसे है या नहीं। लेकिन इस बातका

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