Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 39
________________ ६७ अपमानका प्रतिकार। बिलकुल ध्रुव है कि बहुत अधिक अपमानित होने पर भी एक मुहर्रिर किसी अँगरेजको उलट कर मार नहीं सकता और हमारी समझमें केवल इसीलिये अँगरेजोंको अधिक दोषी ठहराना बहुत ही अनावश्यक और लज्जाजनक है। ___ इस बातकी ओर हम लोगोंका ध्यान रखना उचित हो सकता है कि मार खानेवाले मुहर्रिरको कानूनके अनुसार जो कुछ प्रतिकार मिल सकता हो उस प्रतिकारसे वह तनिक भी वंचित न हो, लेकिन हमें इस बातका कोई कारण नहीं दिखलाई देता कि जब वह मार खाकर और अपमानित होकर रोता गाता है तब सारे देशके लोग मिलकर खूब हो-हल्ला करें और केवल विदेशीको ही गाली गलौज दें। बेल साहबका व्यवहार प्रशंसनीय नहीं था । लेकिन मुहर्रिर और उसके पास रहनेवाले दूसरे आदमियोंका आचरण भी हेय था और खुलनाके बंगाली डिपुटी मजिस्ट्रेटके आचरणने तो हीनता और अन्यायको एकत्र मिलाकर सबसे अधिक बीभत्सपूर्ण कर दिया है। थोड़े ही दिन हुए इसी प्रकारकी एक घटना पवनामें हुई थी। वहाँ म्युनिसिपैलिटीके घाटपरके एक ब्राह्मण कर्मचारीने पुलिसके साहबके पंखाकुलीसे वाजिब महसूल लेना चाहा था, इसपर पुलिसके साहबने उस ब्राह्मण कर्मचारीको अपने घर ले जाकर उसकी बहुत अधिक दुर्दशा की। बंगाली मजिस्ट्रेटने उस अपराधी अँगरेजको तो बिना किसी प्रकारका दंड दिए ही केवल सचेत करके छोड़ दिया परन्तु जब उस पंखाकुलीने उक्त ब्राह्मणके नाम दंगा करनेकी नालिश की तब ब्राह्मणको बिना जुरमाना किए न छोड़ा! जिस कारणसे बंगाली मजिस्ट्रेटने प्रबल अँगरेज अपराधीको केवल सचेत करके छोड़ दिया और असमर्थ बंगाली अभियुक्तका जुर

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