Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 32
________________ से उसका सन्मान कर, अपने विश्वसनीय पुरुषों के द्वारा उसको अपनी नगरी में पहुँचा दिया। चंद्रराजा, महेन्द्रराजा से इस वृत्तान्त को जानकर, अखंडित व्रत से युक्त रतिसुंदरी को बहुमानपूर्वक अपने महल में ले गया। इस प्रकार मन-वचन और काया की निर्मलता पूर्वक साध्वी के द्वारा प्रदत्त इस व्रत को, रतिसुंदरी अपने जीवनपर्यंत तक पालन किया। ॥ रतिसुंदरी का चरित्र संपूर्ण ॥ सुसीमनगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसका सुकीर्ति नामक मंत्री था। श्रीदत्त मंत्रीने सुंदरव्रत से युक्त बुद्धिसुंदरी का विवाह सुकीर्तिमंत्री से किया। एक दिन गवाक्ष में बैठी, बुद्धिसुंदरी का रूप देखकर जितशत्रु राजा मोहित हो गया। मंत्री में दोष निकालकर, उसने बुद्धिसुंदरी को ग्रहण कर लिया और अपने महल में ले गया। कहा गया है कि न पश्यति दिवोलूको द्विको निशि न पश्यति । कामान्धः कोऽपि पापीयान् दिवा नक्तं न पश्यति ॥ उल्लू दिवस में नहीं देखता है, कौआ रात में नहीं देख सकता है। कोई कामान्ध पापी, दिवस- रात दोनों को नहीं देखता है। उसके बाद राजा ने नगरवासियों की विज्ञप्ति से, मंत्री को छोड़ दिया। राजा अपने इष्ट की सिद्धि के लिए बुद्धिसुंदरी के पास गया। खुद के सत्त्व में अत्यन्त दृढ़ बनी बुद्धिसुंदरी ने अपने हृदय में विचारकर राजा से कहने लगी- राजन् ! ध्वजा के समान तेरा चित्त चंचल क्यों है? परवश स्त्री पर तेरी बुद्धि परवश क्यों है ? राग रूपी समुद्र में निमग्न तुझे भयंकर दुःख का सामना करना पड़ेगा। यह विषयसुख तिलमात्र है और दुःख मेरु के समान है। टेढ़ी चालवाली और क्रोध करती सर्पिणी का आलिंगन करना उचित है किन्तु नरक की तरफ प्रयाण करने के लिए मार्ग के समान नारी का आलिंगन कामी पुरुष को उचित नहीं है। राजन्! अपने मन को माया रहित बनाओ और खराब ग्रह रूपी इस कलह को छोड़कर, खुद को अमृत से भी श्रेष्ठ ऐसे संतोष से सिंचित करो। यदि तेरी हृदय की इच्छा शांत नहीं होती है, तो जब तक मेरे व्रत का नियम पूर्ण न हो जाये, तब तक रुको। राजा ने उसकी बात स्वीकार की । बुद्धिसुंदरी ने खुद की एक प्रतिमा बनाई। उसने प्रतिमा के अंदर छिद्र बनायें और बीच में विष्टा से भर दी। प्रतिमा को चंदन से विलेपन किया और सुंदर आभूषणों से सजाया । राजा को दिखाकर, उसने पूछा- क्या मैं ऐसी ही हूँ अथवा नहीं? राजा ने कहा- अहो ! तेरे शिल्प की कुशलता के बारे में क्या कहूँ? तेरा पति भी इसे देखकर, रागी बन जायेगा । तब उसने कहा- यदि ऐसा है, तो इसको अपने पास रख ले और मुझे छोड़ दे। अपने कुल को कलंकित मत करो। यह सुनकर राजा क्रोधित हुआ और पैरों से लात मारकर प्रतिमा को तोड़ दी । 27

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