Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 105
________________ कोई देव अथवा दानव की संभावना दिखायी नही देती है। यह बात सुनकर, राजा ने अपने सैनिक को बुलाया और डांटते हुए कहने लगा - रे! क्या तुम रात्रि के समय सोते हो? हाथ में तीक्ष्ण तलवार लेकर नगर में पहरा नहीं देते हो? तब सैनिक ने कहा मैं रात्रि के समय नगर के अंदर पहरा देता हूँ तथा नगर के दरवाजे बंध करता हूँ। मैं चोर के पीछे भागा था, किंतु उसे पकड़ न सका और लोगों की आवाज भी सुनी थी। इसलिए मैं आप से निवेदन करता हूँ कि प्रयत्नपूर्वक आप अपने अंतःपुर तथा नगरवासियों की इस संकट से रक्षा करें क्योंकि पौरवर्ग देव सदृश होता है। इस प्रकार सैनिक के वचन सुनकर, राजा विचाराधीन बन गया। उतने में ही गिरिसुंदर ने नमस्कारकर, राजा से विज्ञप्ति की - यदि आप मुझे आज्ञा दे तो मैं उस दुराचारी चोर को सात दिनों के अंदर पकड़ लाता हूँ। राजा के द्वारा आज्ञा देने पर कुमार ने अपने गुप्तचर पुरुषों को इस कार्य में नियुक्त किया। वे भी चोर को पकड़ न सके। इसलिए कुमार स्वयं ही नगर से बाहर निकला। शून्य उद्यान आदि में पर्यटन करते हुए, कुमार ने पर्वत शिखर के समीप जलती हुई अग्नि को देखा। उस प्रदेश के समीप जाने पर, वहाँ पर कुमार ने गुगल काष्ठ से आहुति करते किसी पुरुष को देखा। उस पुरुष के निकट में ही सिद्ध हुए किसी दुःसाध्य क्षेत्रपाल को खड़ा देखा। क्षेत्रपाल उससे कहने लगा मैं इस कुमार की महिमा से ही तुझे सिद्ध हुआ हूँ। पश्चात् क्षेत्रपाल के अदृश्य हो जाने पर, साधक ने कुमार से कहा - सत्पुरुष ! गुप्तरीति से आकर, आपने मुझ पर उपकार किया है। इसलिए कहो मैं आपके लिये क्या संपादन कर सकता हूँ? तब कुमार ने कहा- आपको विद्या सिद्ध हो जाने से, मैं कृतार्थ बन गया हूँ। अन्य क्या मांगूँ? इस प्रकार इच्छा रहित कुमार को, उस साधक ने रूपांतरकरी विद्या दी । इसीबीच कुमार ने नगर की दिशा से किसी स्त्री का अत्यंत करुण शब्द सुना। कोई दुष्ट आत्मा स्त्री का अपहरण कर रहा है, ऐसा निर्णयकर कुमार उस तरफ दौड़ा। किंतु वहाँ पर भी, कुमार ने किसी को नही देखा । कुमार ने निश्चय कर लिया कि पर्वत की गुफा में कोई दुष्ट आत्मा निवास कर रहा है। कुमार सोचने लगा अब इसे कैसे ढूँढूंगा? हाँ, मार्ग मिल गया है। यह स्त्रीलंपट है। इसलिए मैं युवती का रूप धारण करता हूँ। पश्चात् रूपांतरकरी विद्या से कुमार ने अपना रूप परावर्तन कर लिया। वह दुष्ट भी स्त्री को देखकर, देवकुलिका से बाहर निकल आया। कापालिक वेषधारी उस दुष्ट को देखकर, कुमार इस दुष्ट को मारूँ अथवा नहीं ऐसे संशय में पड गया। यह कपटी निश्चय से वध्य ही है ऐसा विचारकर, कृत्रिम वेषधारी तथा जिज्ञासु कुमार ने रोना प्रारंभ किया। रोने की आवाज सुनकर, कापालिक भी स्त्री के संमुख आगया। उसके सुंदर रूप को 100

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