Book Title: Pruthvichandra Charitram
Author(s): Satyaraj Gani, Mangalvijay
Publisher: Chandulal Punamchand
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षष्ठो भवः।
--- -- पुण्यानुबन्धिपुण्यप्रभावतस्तावथो सुरद्धिसुखम् । भुक्त्वा च्युत्वा च ततो यत्रोत्पन्नौ शृणुत तदतः ॥ १॥ अस्ति विदेहजनपदे मिथिलापुर्या भुजौजसा सिंहः । नरसिंहनामनृपतिः स्वयशोभरधौतदिग्वलयः ॥ २॥ तस्याद्भुतगुणशाला सुकृतविशाला शिरीषसुकुमाला । देवी गुणमालाऽऽख्या चन्द्रकलानिर्मला बाला ॥३॥ परिपूर्णमहाभोगामपराक्रान्तां भुवं प्रणयिनी च । सममनुभवनसमय समयं तं वेद भूमीशः ॥ ४ ॥ भूपोऽन्यदाऽऽनपुंसा विज्ञप्तो देव ! यदिह पूर्वाप्याम् । पौरस्त्रीणां शुश्रावालापमहं जगादेति ॥५॥ जीयानरसिंहनृपोऽन्याऽऽख्यत् सखि! नैष भवति नरसिंहः। किन्तु नरजम्बुकोऽयं यदुदास्ते पुत्रहीनोऽपि ॥६॥ श्रुत्वेति चित्रवार्ता भूपोऽथापृच्छदङ्गजोपायम् । सचिवांस्तेऽप्याहुरिदं कश्चिद्योगीह देवोऽस्ति ॥ ७ ॥ स च साधको जनेष्टं दत्तेद्भुतडम्बरः स पुत्रार्थे । पृष्टव्यो भूपतिनाऽप्याहूतोऽयं सबहुमानम् ॥ ८ ॥ पृष्टश्च सविनयं भो ! योगिन्! सामर्थ्यमस्ति ते कीटकाईषद्विहस्य सोऽप्याचख्यो नृप कार्यमादिश मे ॥९॥
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