Book Title: Prashnamala Stavan
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Jain Pathshala

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Page 2
________________ प्रस्तावना. प्रिय पाठको ए वात कीसीसे छीपी हुई नहीं है कि जैनी स्याद्वदी है और जैनीओका आगम भी स्याद्वद की गंभीर शेलीसे भरा हुवा है परन्तु अधुनीक समयमे कितनाक नामधारी+जैनी केवल ३२ सुत्रकाही मान बेठ है इसीका मुख कारण श्रीजिन प्रतिमाको वन्दनीक पुजणीक नही मानणाकाही है उनि महनुभावांसे पुछा जाता है क्या ३२ सुत्र । सच्चा हे बाकी जुठा है इसपर कितनेई केहते है की बाकी सुत्रांमे मूर्ती का अधिकार पीछेसे मीला दीया है. प्रिय ! जब ३२ सुत्रांमे ही मुर्तीका अधिकार है तो फेर अन्य सुत्रां. मे पीछेसे मिला दिया किस वास्ते केहेते है । और क्या साबुती है कितनेक मुर्ती उत्थापक केहते है कि ३२ सूत्रका मूल पाठमे तो मुर्तीपुजा हे नहीं और टीका नियुक्ती आदिमे हे वो हम नही मानते. प्रिय! ३२ सुत्रांका मूल पाठमे मुर्ती पुजाका अधिकार अछी तरह से श्रीगणधर भगवान ने फरमाया है वो हमारी वणई (गयवर विलास) पुस्तकमे स्पष्ट बतला दिया है। अगर आप पांचगी नहीं मानते हो इसका क्या कारण है.. (पुर्व पक्ष) मुल ३२ सुत्रांसे पांचागीमे कीतनेही बोल अमीलते है. (उत्तर पक्ष) प्रिये जैन आगममे ऐसी बात कीसी पांचागी प्रकर्ण * स्थानकवासी तैरापन्थी.

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