Book Title: Prashnamala Stavan Author(s): Gyansundarvijay Publisher: Jain Pathshala View full book textPage 8
________________ पांचसो जोजनकी चोडादा रव्या, गजदंता दोय जाणजी। उपरकुट शहस जोजनको, जंबुद्धिप पन्नति वखाणजी ॥7॥४१॥ रुषभ कुटको पहेला पणौ, आठ जोजनको मुलजी। पाठांतर बार जोजनको, जंबुद्विप पन्नति सु मूलजी ॥॥४२॥ अर्द्ध भरतकी जीवा दाखी, जंबुद्विप पन्नति मजारजी। . नव सहस सातसो अडतालीश, बारा कला विचारजी ।मु।४३। चोथे अंगे तेहीज जीवा, नव हजारको मानजी । पंचागी वीना ते कीम जाणे, हिरदे आणो ज्ञानजी ।मु॥४४॥ चोथे अंगे जगन थिति, बत्तीस सागर बीजे वीमाणजी । पन्नवणमे ईगतीस सागर, जघन्न थिति परमाणजी ।मु॥४५॥ रुषभ वीरके वीचे समवायांग, अंतरो कोडा कोड एकजी । बयालीस सहसवर्ष छे उणा,जंबुद्विप पन्नति लो देखजी।मु।४६। साधु आधा कर्मी आहार भोगवे, सुयगडांग बोले एमजी । कर्मोथी लेपे नहि लेप, दो वता मीले केमजी ॥।॥४७॥ भगवती सुत्रम देखो, आघाकर्मी अधिकारजी। चउगतीको कयो पोवणो, रुले बहुत संसारजी ।।मु॥४८॥ उणो सहस तेतीस सूर्य, चक्षु फर्सचोथे अंगनी। बत्तीस सहस एक जोजन जाजे, जंबुद्विप पन्नति चंगजी मु।४९। सतक आठ उदेसो दशमी, भगवती अंग पेछाणजी। पोग्गले पोगाली कयो जीवने, तेहनो सु परमाणजी ॥मु॥५०॥ सोला नाम मेरुका चाल्या, समवायांगमे जोयजी। आठमो प्रयदर्शन दाख्यो, चौदमो उत्तर होयजी ।मु॥५१॥ .. तिमहिज जंबुद्विप पन्नति, मेरुका सोला नामजी। ..... आठमो सलोचय चौदमो उत्तम, ओपचांगीको कामनीम।५२॥Page Navigation
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