Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 14
________________ कारिका ३] प्रशमरतिप्रकरणम् कहूँगा । यद्यपि समस्त द्वादशाङ्गके कथन करनेकी शक्ति मुझमें नहीं है, तथापि ग्रहण, धारण और अर्थका निश्चय करनेमें भी जीव अन्यन्त दुर्बल हैं । अर्थात् जो समस्त अथको न तो ग्रहण कर सकते हैं, ने अपनी स्मृतिमें रख सकते हैं, और न उनका अर्थ ही समझ सकते हैं, उन जीवोंके हृदयोंमें गिराई गई प्रशमरूपी अमृतकी दो-चार बूंदें भी महान् उपकार करती हैं और उपकार करनेवालेका यह उपकार अपने और दूसरोंके हितके लिए विशेष फलदायक होता है । अतः ग्रन्थकार कहते हैं कि जिनशासनसे लेकर कुछ कहूँगा। 'वक्ष्ये' इत्युक्तम् । अबहुश्रुतानां तु सकष्टस्तत्र प्रवेश इति आर्याद्वयेनाहअल्पज्ञानियोंका जिनशासनमें प्रवेश करना कठिन है, यह बात दो कारिकाओंसे कहते हैं: यद्यप्यनन्तगमपर्ययार्थहेतुनयशब्दरत्नाढ्यम् । सर्वज्ञशासनपुरं प्रवेष्टुमबहुश्रुतैदुःखम् ॥३॥ टीका-समस्ताभिधानमशक्यं यद्यपि बहुश्रुतेनास्मद्विधेन सर्वज्ञशासनपुरप्रवेशा. भावादेव । तद्धि परमदुर्ग दुरवगाहम् अनन्तगमपर्यायार्थत्वात् । तथा चोक्तम्-- 'अणंतगमपज्जवं सुत्तम्' इति । अर्थो हि अनन्तैर्गमैः पर्यायैश्च यस्य सर्वज्ञशासनपुरस्य तदनन्तगमपर्यायार्थम् । गमाः स्यादस्ति स्यान्नास्तीति सप्त विकल्पाः । पर्यायास्तु प्रकृतवस्त्वपेक्षाः सूत्रपदस्यैकस्यार्था बहवः । हेतुः कारणमात्रम्, अन्वयव्यतिरेकवान् वा। अनेकरूपज्ञेयालम्बना अध्यवसायविशेषा नैगमसंग्रहादयो नयाः हस्तिदर्शनेऽन्धानामध्यवसायवत् उत्तरोत्तरसूक्ष्मदर्शनात् । शब्दप्राभृताभिहितलक्षणाः साधुशब्दाः प्राकृताः संस्कृताश्च । शब्दप्राभृतं च पूर्वान्तःपाति, यत इदं प्राकृतव्याकरणं संस्कृतव्याकरणं चाकृष्टम् । अनन्तगमपर्यायार्थहेतुनय शब्दा एव रत्नानि व्याख्यातुर्गिरां मण्डनानि भूषणानि, एभिराढ्यं ऋद्धिमत् । आढयशब्दःप्रभूतवचनः । अनन्तशब्दोवा सर्वत्राभिसम्बध्यते-अर्थस्यानन्त्याद्धेतवो नेयाः शब्दाश्चानन्ताः । तथा आढ्यशब्द आकुलवचनः, तैराढ्यम् 'आकुलं गहनम् ' इति । तदेवंविधं सर्वज्ञशासनपुरं प्रवेष्टुम्-अन्तर्निपत्य ज्ञातुम् , अबहुश्रुतैः-अनधिगतसकलपूर्वाथैः, दुःखम्-अशक्यमेव, 'वर्तते' इति शेषः, प्रवेष्टुमित्यर्थः ॥ ३ ॥ अर्थ-यद्यपि अनन्त भङ्ग, पर्याय, अर्थ, हेतु, नय और शब्दरूपी रत्नोंसे भरपूर सर्वज्ञ-शासन रूप नगरमें अल्पज्ञानियोंका प्रवेश करना दुष्कर है । ___ भावार्थ-जिनशासन एक नगरके समान है। जैसे दुर्ग वगैरहके कारण नगरमें प्रवेश करना कठिन होता है, वैसे ही अनन्त भङ्ग, पर्याय वगैरहसे भरपूर होनेके कारण मेरे जैसे अल्प ज्ञानी उस जिनशासन नगरमें प्रवेश नहीं कर सकते । वस्तु कथञ्चित् है, कथञ्चित् नहीं हैं, इत्यादि सात भङ्गोंको गम कहते हैं। एक वस्तुमें काल-क्रमसे होनेवाली हालतोंको पर्याय कहते है । जैसे मिट्टीकी पर्याय घड़ा वगैरह । शब्दोंके १ नास्ति वाक्यमिदं प० प्रतौ। २ पर्यायार्थ प०। ३ दुर्ग-दुर-मु०। ४ पर्ययोश्च मुः। ५ पर्ययार्थम् मु०। ६ पर्ययास्तु मु० ।

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