Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 195
________________ &, माता की तरह जिस (राजा) के द्वारा अपने राज्य में सुखी, दुखी, निम्न वर्ग तथा श्रेष्ठवर्ग वाली सभी प्रजा सदा सुखपूर्वक धारण (पालन) की गयी । १०. जिस (राजा) के द्वारा न्यायवर्जित विरोध, विघ्न, रागद्वेष, ईर्ष्या, लोभ आदि के द्वारा कभी भी न्याय निपटाने में भेद-भाव विशेष नहीं किया गया । ११. जिस (राजा) के द्वारा सज्जन लोगों को आदर ( देकर ) तथा समस्त जनता को संतुष्ट कर अपनी ईर्ष्या से उत्पन्न दुष्ट लोगों के लिए कठोर दण्ड ( की व्यवस्था की गयी । १२ जिस (राजा) के द्वारा धन ऋद्धि से समृद्ध नागरिकों के लिए भी अपने राजस्व की (आय से अधिक सैंकड़ों, लाखों (रुपये) बांटे जाते हुए देखा गया है । १३, नव-यौवन, रूप-प्रसाधन और श्रृंगार-गुण की अधिकता से युक्त भी जिस (राजा) के द्वारा जनपद के लोगों में ( अपने प्रति ) निन्दा और निर्लज्जता को नहीं फैलने दिया गया । १४. ( वह कक्कुक राजा) बच्चों के लिए गुरु, युवकों के लिए मित्र तथा वयोवृद्धों के लिए पुत्र के समान ( था ) । जिसके द्वारा इस प्रकार के सुचरितों से हमेशा सभी जनता का पालन किया गया । १५. जिस (राजा) के द्वारा नमन करते हुए, सद्गुणों की प्रशंसा करते हुए और मधुर वाणी बोलते हुए (आश्रित ) प्रणयीजनों को सदा धन- समूह और सम्मान दिया गया । १६. मारवाड़, बल्लतमरणी से घिरे हुए मध्य गुजरात आदि राजा) के द्वारा अपने सच्चरित गुणों से जनता के दिया गया था । १८४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only (देशों) में जिस ( कक्कुक लिए अनुराग उत्पन्न कर प्राकृत काव्य - मंजरी www.jainelibrary.org

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