Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 74
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशी- विरहातुरपांथानां हृदयानि विदारयामासुः. डुमपिशाचपतिः पलाशोऽपि निजावसरं प्राप्याकंठं पीत. चरित्रं विरहातुरपथिकपलाशोणित व विकसितारुणवर्णनिजपर्णगणमाविष्कुर्वन सर्वानपि पाथान दुर्वलां. श्चकार. नवीनागतवसंत नृपतेर्वेदिन श्वेतस्ततो ब्रमंतो भ्रमरा निजमकरंदरसअब्धत्वं प्रकटयंतो काननेऽमंद गुंजारवं चक्रुः. निर्नरानंदोल्लसितहृदयानां लताममपेषु दृढमालिंगितानां युवकदंपतीनां ल. मानि हास्यस्तबकानीव निकुंजेषु कुंदमुचकुंदकुसुमावलयो रेजिरे. भ्रमजमरनिकरमिषणाविष्कृत. कटाक्षविक्षेपा वनश्रीरपि यौवनमदोन्मत्तानां युवां मनोमृगाननंगव्याधामोघशरविषयांश्चकार. नवपलवाहितशरीरशृंगारास्तरवोऽपि पंचशरशरवारप्रभिन्नहृदया श्व कामिनीकटादाविक्षेपगंषसेकपादप्रहारादिन्निः प्रकटितमनोमन्मथविकारा नूनं निजपल्लवांगुलिनिस्तरुणयुगलगणान् वसंतोत्सवायाजूहव. न. प्रफुल्लमालतीलतागणाबादितगहननिकुंजगतं कमपि तरुणं निर्जनत्वेन गतत्र निजनवपरिणीतप्रियामुखचुंबनपरायणं निरीदयावितोत्कटमदनविकार श्व दिनकरोऽपि स्वप्रियां कमलिनी निजकरैर्निर्नरमालिंग्य परिचुंबतिस्म. मन्मथशरोन्मथितहृदयापि कापि नवपरिणीता कामिनी पतिसंग. मोत्कंठितापिज्जयां पराङ्मुखीचता सौगंध्यक्षुब्धनिकटभ्रमअमराभिनुयमानमुखकमला तशंभ For Private And Personal Use Only

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