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उदयपुर-प्रशस्ति
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युद्ध में युवराज को जीतकर एवं उसके सेनापतियों का वधकर उस विजय के अभिलाषी ने त्रिपुरी में अपनी तलवार ऊंची की। 15 हूणराज को जीतने वाले उसके अनुज श्री सिन्धुराज ने विजय से लक्ष्मी प्राप्त की। जिसने नरोत्तमों को आकपित करने वाले रत्न श्री भोजराज को उत्पन्न किया। 16 कैलास से मलयगिरि तक तथा अस्ताचल से उदयाचल तक, राजा पृथु के समान जिसने पृथ्वी का भोग किया। अपने धनुष से पृथ्वी के भार स्वरूप भारी गिने जाने वालों को भी अनायास विनष्ट कर विभिन्न दिशाओं में फेंक दिया, जिससे पृथ्वी भी अत्यंत प्रसन्न हुई। 17 भोज ने जो साधा, अनुष्ठान किया, प्रदान किया एवं ज्ञात किया-वह किसी ने भी नहीं किया। कविराज श्रीभोज की और क्या प्रशस्ति की जाय? 18 चेदी के स्वामी, इन्द्ररथ, तोग्गल, भीम आदि मुख्य नृपों को तथा कर्णाट, लाट के स्वामी, गुर्जर के राजा एवं तुरुष्क (तुर्क) आदि उसके मौल (पारंपरिक) सेवकों द्वारा ही पराजित कर दिये गये। 19 केदार, रामेश्वर, सोमनाथ, मुण्डीर', कालानल रुद्र के सुंदर देवालयों को सर्वत्र व्याप्त (बनवा) कर जिसने जगती (भवन के आधारों से युक्त कर जगत्) को सार्थक कर दिया। 20 उस आदित्यप्रताप शिवभक्त के देवलोक सिधारने पर धारा का कुलागत क्षेत्र शत्रु रूपी अंधकार से आवृत हो गया। शिथिल (दुर्बल सैन्य) अंगों से प्रबल शत्रुरूपी अंधकार को खड्ग (दण्ड) धारा की किरण जाल से विनष्ट कर अपने प्रताप से लोगों को प्रसन्न करता हुआ अन्य सूर्य के समान उदयादित्यदेव का उदय हुआ। 21 जिस परमार ने धरणीवराह को अनायास उखाड़ फेंका उसके लिये इस भूमि का उद्धार कौन सी बड़ी बात है। 22 शत्रुओं के अश्व-समूह - - - - - |
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मुण्डीरपत्तन के उल्लेख जैन हरिवंशपुराण में हैं।
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