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माना आपने अथक परिश्रम से सब को समान कर दिया पर क्या वह समानता स्थिर रह सकेगी? एक उदाहरण लें
"एक पिता ने चारो पुत्रो को, अपनी सपत्ति का एक समान बटवारा कर दिया। इतना करने पर भी थोडे वर्षों बाद ही उनमे बडी असमानता आ गई। पहले के चार लडके हुए, बडे होकर कार्य में सहारा देने लगे और बडी उन्नति कर ली। दूसरे के मात लडकियाँ हुई और उसे सहारा न मिलने से वह जैसा था वैसा ही रहा। तीसरा स्वास्थ्य ठीक न रहने में कार्य ही न कर सका और पहले से अधिक कमजोर पड़ गया। चौथे ने कुब्धमनी मे पड कर अपने धन को तो बर्वाद किया ही, ऊपर से ऋणी भी वन बैठा।"
जिस समानता के लाने के लिए आप जो अथक परिश्रम कर रहे है या लाने की मोच रहे है या उसे महान उपयोगी समझ रहे हैं या समस्या के हल का सच्चा उपाय समझ रहे है, ले आने पर भी उसमे स्थायित्व है ? ___काटे कम पैदा हो, रास्ते में न विखरें यह ध्यान जरूर रखे, पर जूतो का उपयोग निश्चिन्तता प्रदान करता है। असमानता को न देखने की जो कमजोरी हमारे में है उसे मिटाने की कोशिश हमे जरूर करनी चाहिए। यदि यह कमजोरी वनी रही तो अन्य न मिटने वाले कारगी के सामने हमे हार खानी होगी। फिर हम प्रवान मत्री के मत्रीत्व में और कुली के कुलीत्व में जो गहरी असमानता है, उसे कैमे देव मकेंगे दुर्भाग्यवश यदि कलह हो जाता है तो पहले के प्रयत्लो पर पाला पड जायेगा या नहीं ? व्यावहारिक असमानता तो हर क्षेत्र में रहेगी कारण हमारा जन्म ही असमानता को लेकर होता है। इसे मिटाने का एक ही उपाय है कि इसे हम अपने मन में न खटकने दें। हम अपने मन पर पूरा नियत्रण कायम रखे। अपने दुःख को दुख और सुख को सुख न समझे। भावना को सम वनावे। समान होने का यही स्थायी हल है। अन्यथा ससार का कोई उपाय हमें ममान नहीं कर सकता। ___ यह निश्चित है कि अपने क्षेत्र में 'समाज का अकुश' अपना पूर्ण प्रभाव रखता और अनेक अग में हमारा गहरा उपकार करता है पर इसकी भी एक सीमा है। हमारे मन पर स्थायी, सच्चा और पूर्ण नियत्रण तो हमारा अपना अकुश ही रख सकता है। तब हमारे सामने एक ही रास्ता रहा-"अपने मन को सभाल कर सही रास्ते पर चलाना।"
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