Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 422
________________ करुणा का अर्थ है कि तुम दूसरे व्यक्ति की मदद करना चाहोगे। तुम वह करना चाहोगे जो कुछ किया जा सकता है। उसे उसके दुख में से बाहर लाने में तुम उसकी मदद करना चाहोगे। तुम उसके कारण प्रसन्न नहीं हो, किंतु तुम दुखी भी नहीं हो। ठीक इन दोनों के बीच है करुणा। बुद्ध करुणामय हैं। वे तुम्हारे साथ दुखी अनुभव नहीं करेंगे क्योंकि उससे किसी को मदद नहीं मिलने वाली। और वे प्रसन्न भी नहीं अनुभव करेंगे। क्योंकि प्रसन्नता अनुभव करने में कोई तुक नहीं है। जब कोई दुखी ही न हो, तो वह कैसे प्रसन्न अनुभव कर सकता है गु लेकिन वे अप्रसन्न भी अनुभव नहीं कर सकते क्योंकि उससे मदद नहीं मिलने वाली। वे करुणा अनुभव करेंगे। करुणा है ठीक इन दोनों के बीच में। करुणा का अर्थ है, तुम्हारे दुख में से तुम्हें बाहर लाने में मदद करना चाहेंगे। करुणा का अर्थ है, वे तुम्हारे लिए हैं, लेकिन विरुद्ध है तुम्हारे दुख के। वे तुम्हें प्रेम करते है,तुम्हारे दुख को नहीं। वे तुम पर ध्यान देना चाहेंगे, लेकिन तुम्हारे साथ लगे तुम्हारे दुख पर नहीं। जब तुम सहानुभूतिपूर्ण होते हो, तब तुम दुख को प्यार करने लगते हो, दुखी को नहीं। और यदि अकस्मात वह व्यक्ति प्रसन्न हो जाता है और कहता है, कोई फिक्र नहीं, तो तुम्हें झटका लगेगा। क्योंकि वह तुम्हें अब अवसर नहीं देता सहानुभूतिपूर्ण होने का और उसे दिखा देने का कि तुम कितने ज्यादा ऊंचे, बेहतर और प्रसन्न व्यक्ति हो। जो दुखी है उस व्यक्ति के साथ दुखी मत हो जाना। इसमें से बाहर आने में मदद देना उसे। दुख को कभी प्रेम का विषय मत बनाना, दुख को कोई स्नेह मत देना। क्योंकि यदि तुम इसे स्नेह देते हो और इसे प्रेम का विषय बनाते हो, तो तुम इसके लिए एक द्वार खोल रहे होते हो। देर-अबेर तुम दुखी होओगे। अलगाव बनाये रहो। करुणा का अर्थ है, तटस्थ बने रहो। हाथ बढ़ा दो अपना, पर अलग बने रहो। करो मदद, लेकिन दुखी अनुभव मत करना और सुखी अनुभव मत करना; क्योंकि दोनों एक ही है। जब सतही तौर पर किसी व्यक्ति के दुख में तुम दुखी अनुभव करते हो, गहरे तल पर सुखी होने की धारा दौड़ जाती है। दोनों बातें ही गिरा देनी हैं। करुणा तुम तक मन की शांति ले आयेगी। बहुत लोग आते हैं मेरे पास जो समाज सुधारक है, क्रांतिकारी है, राजनेता है, आदर्शवादी हैं। और वे कहते है, 'कैसे जब संसार में इतना ज्यादा दुख है तो आप लोगों को ध्यान और मौन सिखा सकते हैं? वे मुझसे कहते है, 'यह स्वार्थ है।' वे चाहते है कि मैं लोगों को दुखियों के साथ दुखी होने की शिक्षा दूं। वे नहीं जानते कि वे क्या कह रहे है। लेकिन वे बहुत अच्छा महसूस करते है। समाजसुधार का कार्य करने से, समाज-सेवा करने से वे बहुत अच्छा अनुभव करते है। और यदि अकस्मात यह संसार स्वर्ग बन जाये, और ईश्वर कहे, अब हर चीज ठीक हो जायेगी', तो तुम समाज-सुधारकों और क्रांतिकारियों को परम कष्ट में पड़ा पाओगे, क्योंकि उनके पास करने को कुछ नहीं होगा!

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