Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 448
________________ इसी घड़ी में गुरु की आवश्यकता होती है जो कह सकता हो, 'प्रतीक्षा करो। भयभीत मत होना। मैं हूं यहां।' यह तो एक झूठ ही होता है, लेकिन फिर भी तुम्हें जरूरत रहती है इसकी। कोई नहीं है वहां। कोई गुरु भी नहीं हो सकता है वहां, क्योंकि जब तुम्हारा मन समाप्त होता है तो गुरु भी समाप्त हो जाता है। अब तुम नितांत अकेले होते हो, लेकिन अकेले होना इतना भयंकर होता है, इतना डरावना, इतना मृत्यु की भांति, कि कोई चाहिए तुम्हें साहस देने को। यह मात्र एक क्षण की ही बात होती है, और झूठ मदद कर देता है। और मैं कहता हूं तुमसे, सारे बुद्ध झूठ कहते रहे हैं मात्र तुम्हारे प्रति करुणा होने के कारण ही। गुरु कहता है, 'मैं हूं यहां। तुम मत करना चिंता; तुम आओ आगे।' तब आश्वासन मिल जाता है तुम्हें और तुम लगा देते हो छलांग। यह क्षण भर की बात होती है और हर चीज वहीं लटक रही होती है। सारा अस्तित्व आ टिका होता है वहीं; वह पार होने की सीमा रेखा है, उबाल आने का स्थल। यदि तुम कदम उठा लेते हो, तो तुम हमेशा के लिए खो जाते हो मन के प्रति। फिर कभी न कुछ विधायक होगा, न नकारात्मक होगा। तुम भयभीत हो सकते हो। तुम फिर से वापस लौट सकते हो और प्रवेश कर सकते हो नकारात्मक में या विधायक में जो कि सुखद होता है, आरामदेह होता है, जाना-पहचाना होता है। तुम्हें अज्ञात में प्रवेश करना होता है यही होती है समस्या। पहले तो समस्या होती कि नकारात्मक को कैसे गिराये, जो कि सरलतम बात है-एक पकी हुई समझ की जरूरत होती है। और तुम वह भी नहीं कर पाये हो। फिर समस्या होती है कि सकारात्मक को कैसे गिराये जो इतना सुंदर होता है और जो तुम्हें इतनी प्रसन्नता देता है। लेकिन यदि तुम नकारात्मक को गिरा देते हो, यदि तुम उतने ज्यादा परिपक्व हो जाते हो, तो तुम दूसरी समझ भी पा लोगे,दूसरा रूपांतरण, जहां तुम देख पाओगे कि यदि तुम विधायक को नहीं गिराते तो नकारात्मक लौट आयेगा। तब विधायक अपनी सारी विधायकता खो देता है। यह विधायक था केवल नकारात्मकता की तुलना में ही। एक बार नकारात्मक फेंक दिया जाता है, तो विधायक भी हो जाता है नकारात्मक क्योंकि अब तुम देख सकते हो कि यह सारी प्रसन्नता क्षणिक होती है। और जब यह क्षण खो जाता है, तो कहां होओगे तुम? नकारात्मक फिर से प्रवेश करेगा। इससे पहले कि नकारात्मक प्रवेश करे उसे गिरा देना। नरक सदा पहुंचता है स्वर्ग के द्वार से ही। स्वर्ग तो मात्र द्वार होता है, वास्तविक स्थान तो नरक है। स्वर्ग दवारा और स्वर्ग की आस द्वारा तम प्रवेश करते हो नरक में। वास्तविक स्थान नरक है; स्वर्ग

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