Book Title: Parshwanathopasargaharini Shasandevi Shree Padmavatimata
Author(s): Nandlal B Devluk
Publisher: Arihant Prakashan
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चितस्य शांतिकरणे प्रशमाब्धि तुल्या, पद्मावती जयति शासन पुण्य-लक्ष्मीः यंत्राणि नाशकरणे किल वै पशुनाम्, धोराणि हिंस्त्र जनता परिकल्पतानि तेषांबलं विफलतां नयने समर्था, पद्मावती जयति शासन पुण्य- लक्ष्मी : सन्मांत्रिकैस्तु निज साधन साधिता सा, काले कलावपि वरं परिदातुमीशा धन्यं प्रतीहपरिदेशित - सर्वगुह्या, पद्मावती जयति शासन पुण्य-लक्ष्मी :
सिरि पउमावई अट्टगं कारिगा :- विउसी अज्जा रयणचूलासिरि सुंथुती पहुं पासं, सावहाणा पइक्खणं विणासे विग्ध विदंस्स, जयइ पउमावई
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दलउ दलउ दुक्खं, भक्तिराणं नराणं, हरउ हरउ विग्धं, संघकज्जे सडित्ति, कुणउ कुणउं, सिग्धं, पुञ्ज पोम्मावइ मा, जयउ जयउ अम्ब, सव्व साहेज्जे सील
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શ્રી પાર્શ્વનાથોપસર્ગ - હારિણી
पउमा होउ संतुट्ठा, रोग सोग निवारिणी सुमंगला महादेवी, सया सुहम्म वच्छला सेयवासाssसवासाणं, सम्मेय सेल वृत्तंते अउव्वणुग्गहं कुज्जा, विवाय भंजणं परं पुम- नयणे ! रम्मे ! रत्ते ! स्तुप्पलङ्गि जे हंसारुढे ! कयासणे ! कुकुडोरगवाहिणि (३) सम्मदंसण संजुता, सा ओहिनाण लोयणा सोहग्ग सिरि संपन्ना, होउ रस्त सुहंकरी विविह दंसणे णेग - णामाहि विस्सुया जए गावयारिणी सिट्ठा, सव्व सम्म विहायिणी अन्नाणांध अ सिद्धते, चकबु सिद्धिं सयायणीं दिज्जउ देवि ! तित्येस, तत्त वियारणं भव ॥७॥
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