Book Title: Parmatma Banne ki Kala
Author(s): Priyranjanashreeji
Publisher: Parshwamani Tirth

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Page 12
________________ पूर्वधर द्वारा ही रचित है। प्रथम सूत्र में बताया है कि अनादिकाल से जीवात्मा संसार में राग-द्वेष व कर्मों के संयोग से परिभ्रमण कर रही है। संसार भ्रमण से विरमित होने के लिए प्राथमिक क्या-क्या उपाय है?यह इससे प्रतिपादित है। प्रथम सूत्र का नाम पाप प्रतिघात गुण बीजाधान है। चतुःशरण गमन, दुष्कृत गर्हा, सुकृत अनुमोदन का वर्णन है। संसार दुःखरूप है, दुःख का फल देने वाला और दुःख का अनुबंध बढ़ाने वाला है। साध्वी प्रियरंजना श्री म.सा. ने प्रथम सूत्र की सविस्तार विवेचना की है। हालांकि अन्य विवेचन भी उपलब्ध है फिर भी यह सुबोध, सरल कृति जन साधारण के लिए अनमोल उपहार है। साध्वीवर्या का श्रम अनुमोदनीय है। अन्तर के कण-कण से श्रम साफल्य हेतु शुभकामनाएं सहवात्सल्य पूर्ण आशीर्वाद। सुधि पाठकवर्ग इसका स्वाध्याय चिंतन, मनन करके जीवन में परिवर्तन लायेंगे, इसी आशा के साथ - - साध्वी सलोचना श्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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