Book Title: Parmatma Banne ki Kala
Author(s): Priyranjanashreeji
Publisher: Parshwamani Tirth

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Page 10
________________ आशीर्वचन जिनागम व आगमेतर साहित्य हमारे जीवन का शाश्वत् सत्य है। जिसमें विमल विचारों की धड़कन, आचार का स्पन्दन, अनेकान्त का अनुबंधन और उच्च संस्कारों का अङ्कन है। ___पंचसूत्र' जीवन चेतना की निर्मल तरंग है, जिसमें अन्तर्जगत की दिव्य वभव्य अनुभूतियाँ रूपायित होकर लहराती हैं। इसके प्रत्येक चरण में, प्रत्येक ध्वनि में और प्रत्येक शब्द में पवित्र प्रेरणा अठखेलियां करती है; जिसमें विचारों का वेग होता है, अनुभूति का आलोक होता है और संवेदना की स्निग्धता होती है। इसी कारण इतिहास के पृष्ठों पर और जन-जिह्वा पर स्वर्णाक्षरों की भांति चिरस्थायी है। ___ 'पंचसूत्र' की महक चंदन की तरह है, जो जितनी घिसी जाए उतनी ही अधिक फैलती है। इसमें दर्शन सम्बन्धी गंभीर चर्चा के साथ धर्म का मर्म भी प्रस्तुत है। यह अपनी मधुर महक से आप्यायित करती रहती है। प्रस्तुत संदर्भ में परम पूज्या साध्वी श्री प्रियरंजना श्री जी म.सा. के कृतित्व का एक स्पष्ट व सुदृढ़ आधार है और वह है विचारों में अनुभव की प्रेरकता और शब्दों की सजीवता। इसकी व्यंजना उनकी अपनी रसपूर्ण लेखनी से हुई है, इसलिए प्रस्तुत पुस्तक में सर्वत्र ताजगी, आचार-विचार और भक्ति से ओतप्रोत चिन्तन की महक मिलती है। तदर्थ मुझे हार्दिक खुशी है। - मुनि ऋषभ विजय 08 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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