Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 54
________________ (५३) ज़ु एती ॥३॥ ज्ञान दर्शन चारित्र, लहीशुं जीव वि वेक॥ण कारण हुं स्वामी, वांको चाल्यो बेक॥४॥ केशी कहे सुण राय, जाणे तुं व्यवहारी॥केटला कहे राय, नगवन चार प्रकारी ॥५॥ एकतो देव दा न, वचनें नवि संतोषे ॥वचने संतोषे एक, दाने क री नवि पोषे ॥६॥ एकतो देवे दान, वचन पण बो ले मीगे॥एक न देवे दान, नवी संतोषे धीगे॥७॥ वलतो गुरु कहे एम, कुण व्यवहारी होय ॥ चार पु रुषमां राय, कुंण अव्यवहारी जोय ॥ ७॥राजा क हे करी नेद, तीन अडे व्यवहारी ॥ नवि ये न वदे मीठ, जाणो ते श्रव्यवहारी॥ए॥ नवि संतोषे वय ण, तोपण जगति घणेरी॥करतो चित्त विवेक, वात लहीमें तेरी ॥१०॥ प्रसन उत्तर थया श्राउ, देखो गुरु चतुरा॥ संतोष्यो ईम राय, कही अति नीति नलाइ॥ ११॥ सर्वगाथा ॥३४॥ ॥दोहा॥ हवे परदेशी श्म जणे, केशी श्रमण कुमार ॥ पंमित चतुर घणु तुमें, बुद्धि तणा जंमार ॥१॥ गुरु उपदेश लह्यो जलो, सकल कला समरन ॥ जूदो जीव शरीरथी, देखाड्यो मुज हब ॥२॥ काढी था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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