Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(५७) नवि बाहेर नवि शाला मांहे, ते नर करे प्रकाश॥ ईम लेश वली सूंमले ढांके, तो तीतरो उजाश ॥देण ॥५॥ श्म लघु लघु ढांकणे ढांकतो जाय, दीप शी खा परमाणे, बेहडे त्रण ढांकणे करी ढांके, दीप चं पक सुप्रमाणे ॥ दे० ॥६॥ तो तीतरेंमें करे परका सा, नवि बाहिर किणगमें ॥ इंम जाणो परदेशी राजा, करम तणे परमाणे ॥दे०॥७॥ जीवतो जिण समय करी बांधे, न्हानीमहोटी काया ॥तेह असंख्य प्रदेश करीने, करेसचेतन राया॥दे॥॥तिणे करी सदहो रोंचवो साचो, जीवनें काया जूया ॥ रायपसे णी सूत्रनी साखें, प्रसन उत्तर दश इथा॥दे॥॥
॥दोहा॥ ॥हवे परदेशी श्म जणे,सांनलोकेशी स्वामि॥ पहेली मति दादा तणी, हंति निचे श्राम ॥१॥ जीव काया जूदा नही, तेहिज जीव शरीर ॥ते वार पड़ी मुज बापनी, एहिज मति अति धीर॥२॥ मुज पण मति ने एहवी, नहीं जूश्रा जीवनें काय॥ तेहिज जीव काया अबे, ए निश्चे मन थाय ॥३॥ पुरुष परंपर वीयो, कुल निश्रायें धर्म ॥तेह दृष्टि नवि बोडीशु, ए जाणो हवे मर्म ॥४॥
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