Book Title: Paiavinnankaha Part 01
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 177
________________ 148 पाइअविनाणकहा-१ पुणो वि पुटुं-'कत्थ तुमए एयं लद्धं ?' / तेण वुत्तं-समणाओ / तत्तो निवेण निण्णीयं-'सो एसो मुणिवरो न संदेहो' / कह वि पुण्णजोएण लद्धाइं रज्जसुहाई, कुविए तंमि मुणिंदे, मरणे ताइं दूरीभविस्संति, तओ सयं परेहिं पि खामेयव्वो महासत्तो मुणी / पुव्वं तस्स हिययभावजाणणत्थं पहाणपुरिसे पट्ठवेइ / ते तत्थ गंतूण वंदित्ता संतप्पाणं मुणिदं नच्चा निवं जाणावेइ / नरिंदो सब्विड्डीए समागओ समाणो मुणिवरपयपंकयं नमित्ता नियावराह खामेइ, खामित्ता उवएसं च सोच्चा सम्मत्तं पत्तो गिहत्थजोग्गवयाइं गिण्हेइ, एवं सो राया निम्मलवयाराहणेण समाहीए कालं किच्चा कमेण देवलोगे गओ / कमेण सिवं गमिहिइ / / धम्मरुई वि अणगारो सव्वपावं आलोइत्ता पडिक्कमित्ता सग्गं गओ, कमेण सिज्झिहिइ / एवं दुज्जणस्सावि सुसाहुसंसग्गो परिणामे सुहदायगो होइ / / उवएसो सोचा नावियनंदस्स, भवे दुक्खपरपरं / आसायणं न कुव्वेजा, निग्गंथाणं महेसिणं / / 4 / / सुसाहुजणसंसग्गे नंदनाविअस्स पण्णपण्णासइमी कहा समत्ता / / 55 / / -जयंतीपयरणाओ पुण्णपट्टणे सिरिगोडीपासजिणीसरुवस्सए विक्कमस्स अग्गि-ससि-खं-नेत्त (२०१३)संवच्छरे अक्खयतइआदिणे आयरिअविजयकत्थूरसूरिविरइयाए पाइअविण्णाणकहाए पढमो भोगो / / सिरी अत्थू, सिवं होज्जा / / पसत्थि इइ सिरितवागच्छाहिवइ-सिरिकयंबप्पमुहाणेगतित्थोद्धारग-सासणप्पहावग ___आबालबंभयारि-सूरीसरसेहर-आयरिअविजयनेमिसूरीसर-पट्टालंकार-समयण्णु-संतमुत्ति आयरिअविजयविन्नाणसूरीसर-पट्टधर-सिद्धंतमहोदहि-पाइअभासाविसारयायरिअ-विजयकत्थूरसूरिविरइआए पाइअविनाणकहाए पढमो भागो समत्तो /

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