Book Title: Paiavinnankaha Part 01
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ शब्दार्थ कथा 29 29 29 29 .29 पृष्ठ पंक्ति 71 13 7117 7121 7122 72 1 72 1 162 शब्द अंकेह मुल्लनिरूवगा निरूविंति न तीरंती महईए परिसाए - तणुगं सलागं - अच्छेरमग्गा - अणुमयं विसमं अप्पहियगरं सयं हियए ओइण्णा उवउत्ता पराइओ 27 68 1 29 72 शब्दार्थ આંકો भूख्य नि३५ो नीरजे छ, तपासे छ સમર્થ થતાં નથી મોટી સભામાં ઘાસની સળી આશ્ચર્ય મગ્ન અનુમાન અસમાન આત્મહિતકારી સ્વયં हृयम उतरी 5 ઉપયોગપૂર્વક પરાજિ ત થયેલો कहा-२८ 2ii पुत्रयारय बुद्धिना निधान 29 29 29 72 3 72 6 73 3 27 69 2 सद्दकोसो-१ (कथानुक्रमेण) कथा | पृष्ठ पंक्ति शब्द 27 67 18 घडिआलयं ઘડિયાળ 27 6719 મુધા-ફોગટ ગયો 27 6720 नावगच्छेज्जा જાણતો નથી 27 67 21 | पाओणजीवणं पोए ॐ00 27 67 21 | अण्णवमझंमि भरिये वाओ પવન 27 68 4 सयसिक्करं સો કકડા 68 4 | आहीणं આધીન, વશમાં 68 5 | सिलप्फालिअ- शी। साथे भटपाथी२७ 68 8 महेसिणो મહર્ષિઓ कहा-३० 27 69 4 मइच्चुओ મતિભ્રષ્ટ 27 69 5 सूणावई 27 69 9 | अब्भहियं અધિક विवरीए વિપરીત 28 69 19 અનુભવે છે 28 . 69 19 वाहिपडियारं - વ્યાધિનો પ્રતિકાર 28 6922 | रई રતિ, હર્ષ 28 6923 |समज्जिअं बांध्यु छ 28 6924 उइण्णं ध्यम भाव्यु छ 28 70 1 सयणेहिं સ્વજનો વડે 28 70 4 | अंगीकुणेहि स्वी२ 12 28 71 2 | नियजणगववसायं पोताना पितानो व्यसाय न तरामि હું સમર્થ નથી કસાઈ 30 30 30 30 73 11 73 12 73 13 7314 30 73 14 કહીને पाडिलिउत्त- चउबुद्धिनिहाणो वोत्तूण मुरुक्खसेहर नागया लत्ताए चरपुरिसो रच्छासु 30 30 30 30 7316 7316 7317 7317 भूशिरोम ન આવી સોટીથી ગુપ્તચર પુરૂષો શેરીઓ कहा-२९ 30 7321 ३०७३र 30 73 21 30 73 22

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