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६४४ पाइअसद्दमहण्णवो
भद्ददारु-भमस १६७ प्रासू १६)। २ सुवर्ण, सोना। ३ भद्दव पुं[भाद्रपद मास-विशेष, भादों भप्प देखो भस्स = भस्मन् (हे २,५१: कुमा) मुस्तक, मोथा, नागरमोथा (हे २, ८०)। भहवय ) का महीना (वजा ८२; सुर ३, | भम सक [भ्रम] भ्रमण करना, घूमना । ४ दो उपवास (संबोध ५८)। ५ देव-विमान । १३८)।
भमइ (हे ४, १६१, प्राकृ ६९)। वकृ. विशेष (सम ३२)। ६ शरासन, मूठ (णाया| भद्दसिरी स्त्री [दे] श्रीखण्ड, चन्दन (दे ६, भमंत, भममाण (गा २०२, ३८७ कप्पा १,१ टी-पत्र ४३)। ७ भद्रासन, प्रासन
प्रौप)। संकृ, भमिआ, भमिऊण (षड्, विशेष (चावम)। ८ वि. साधु, सरल, भला, भदा स्त्री [भद्रा] १ रावण की एक पत्नी गा ७४६) । कृ. भमिअव्व (सुपा ४३८)।। सजन । १ उत्तम, श्रेष्ठ (भगः प्रासू १६; | (पउम ७४, १)।२ प्रथम बलदेव की माता | भम पुं [भ्रम] १ भ्रमण (कुप्र ४)। २ सुर ३, ४)। १० सुख-जनक, कल्याण-कारक (सम १५२)। ३ तीसरे चक्रवर्ती की जननी भ्रान्ति, मोह, मिथ्या-ज्ञान (से ३, ४ (णाया १. १)। ११ पुं. हाथी की एक (सम १५२)। ४ द्वितीय चक्रवर्ती को स्त्री कुमा)। उत्तम जाति (ठा ४, २–पत्र २०८; महा)। (सम १५२)। ५ मेरु के पूर्व रुचक पर्वत पर | भमग न [भ्रमक लगातार एकतीस दिनों १२ भारतवर्ष का तीसरा भावी बलदेव रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८)। ६ का उपवास (संबोध ५८)।" (सभ १२४)। १३ अंगविद्या का जानकार एक प्रतिमा, व्रत-विशेष (ठा २, ३-पत्र भमड देखो भम = भ्रम; 'भवाम्म भमडइ द्वितीय रुद्र पुरुष (विचार ४७३)। १४ ६४)। ७ राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत | एगुचिय' (विवे १०८ हे ४, १६१)। तिथि-विशेष-द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी २५)। ८ तिथि-विशेष-द्वितीया, सप्तमी भमडिअ वि [भ्रान्त] १ घूमा हुअा, फिरा तिथि (सुज १०, १५)। १५ छन्द-विशेष और द्वादशी तिथि (संबोध ५४)। ६ छन्द- हुआ (स ४७३)। २ भ्रान्ति-युक्त (कुमा)। (पिंग)। १६ स्वनाम-ख्यात एक जैन आचार्य विशेष (पिंग)। १० कामदेव श्रावक की देखो भमि । (महानि ६; कप्प)। १७ व्यक्ति-वाचक भार्या का नाम । ११ चुलनीपिता नामक भमण न [भ्रमण] घूमना, चकराना। (दे नामक (निर १, ३ पाव १: धम्म)। १८ उपासक की माता का नाम (उवा)। १२ ४६; कप्प) भारतवर्ष का चौबीसवाँ भावी जिनदेव (पव एक सार्थवाहक स्त्री का नाम (विपा १, ४)। भममुह पुं[दे] पावत्तं (दे, १०१)। ७)4 गुत्त [गुप्त स्वनाम-प्रसिद्ध एक १३ गोशालक की माता का नाम (भग १५)।
भमया स्त्री [भ्र] भौंह, नेत्र के ऊपर की जैनाचार्य (दिः साधं २३)। गत्तिय न १४ अहिसा, दया (पराह २,१)। १५ एक केश-पंक्तिले २.१४.सा . [गुप्तिक] एक जैन मुनि-कुल (कप्र)। वापी (दीव)। १६ एक नगरी (प्राचू १)।
भमर पुं [भ्रमर] १ मधुकर, भौंरा (हे १, 'जस [ यशस्] १ भगवान् पार्श्वनाथ | १७ अनेक स्त्रियों का नाम (णाया १,८
२४४; कुमा; जी १८ प्रासू ११३)। २ पुं. का एक गणधर (ठा ८-पत्र ४२६)। २ १६, आवम)।
छन्द-विशेप (पिंग)। ३ विट, रंडीबाज एक जैन मुनि (कप्प), जसिय न भद्दाकरि वि [दे] प्रलम्ब, प्रति लम्बा (दे (कप्पू), रुअ [रुच अनार्य देश-विशेष [यशस्क] एक जैन मुनि-कुल (कप्प) ६, १०२)।
(पव २७४), वलि श्री [विलि] १ नंदि [नन्दिन] स्वनाम-ख्यात एक भहिआ श्री [भद्रिका, भद्रा] १ शोभना, छन्द-विशेष (पिंग)। २ भ्रमर-पंक्ति (राय) ।। राज-कुमार (विपा २, २) बाहु पुं
सुन्दर (स्त्री) (प्रोघभा १७)। २ नगरी-विशेष भमरटेंटा स्त्री [दे] १ भ्रमर की तरह अक्षि["बाहु] स्वनाम-प्रसिद्ध प्राचीन जैनाचार्य |
(कप्प)।और ग्रन्थकार (कप्प, एंदि)। "मुत्था स्त्री
गोलकवाली। २ भ्रमर की तरह अस्थिर भद्दिजिया स्त्री [भद्रीया, भद्रीयिका] एक [मुस्ता] वनस्पति-विशेष, भद्रमोथा (परण
पाचरणवाली। ३ शुष्क व्रण के दागवाली जैन मुनि-शाखा (कप्प) १) 'वया स्त्री [पदा नक्षत्र-विशेष (सुर
भद्दिलपुर न [भदिलपुर] भारतवर्ष का एक भमरिया स्त्री [भ्रमरिका] जन्तु-विशेष, बरें १०, २२४)"साल न [शाल] मेरु
प्राचीन नगर (अंत ४; कुप्र ८४; इक)। पर्वत का एक वन (ठा २, ३, इक)। सेण
(जी १८) । देखो भमलिया। पुं[°सेन] १ धरणेन्द्र के पदाति-सैन्य का
भद्द्त्त रवडिंसग न [भद्रोत्तरावतंसक] | भमरी स्त्री [भ्रमरी] स्त्री-भ्रमर, भौंरी (दे)। अधिपति देव (ठा ५, १० इक)। २ एक एक देव-विमान (सम ३२) ।
नीचे देखो। श्रेष्ठी का नाम (आव ४) स न [ व] भद्दुत्तर स्त्री [भद्रोत्तरा] प्रतिमा- भमलिया , स्त्री [भ्रमरीका, री] १ पित्त नगर-विशेष (इक) सण न [सन] भद्दोत्तर विशेष, प्रतिज्ञा का एक भेद,
भमली के प्रकोप से होनेवाला रोग-विशेष, पासन-विशेष, सिंहासन (णाया १, १; पण्ह भद्दोत्तरा ) एक तरह का व्रत (औपः अंत
चक्करः ‘भमली पित्तुदयालो भर्मतमहिदसणं' १, ४ पाना प्रौप) ३०; पव २७१)
(चेइय ४३५, पडि)। २ वाद्य-विशेष भद्र देखो भह (हे २,८०, प्राकृ १७)।
(राय)। भददार न [भद्रदारु] देवदारु, देवदार की भन्नंत
भमस पुं [दे] तृण-विशेष, ईख की तरह का
। लकड़ो (उत्तनि ३)
.? देखो भण= भण् । भन्नमाण
एक प्रकार का घास (दे ६,१०१)।
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