Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 973
________________ सिन्न-सिरि पाइअसहमहण्णवो ६०३ ८-पत्र ४४०; प्रौप; इक)।२ मुक्ति, निर्वाण, सिप्पिअ वि [शिल्पिक] शिल्पी, कारीगर [गृह मकान के ऊपर की छत, चन्द्रशाला मोक्ष (ठा १-पत्र २५: पडि प्रौप कुमा)। (महा)। (दे ३, ४६)। देखो सिरों। ३ कर्म-क्षय (सन २, ५, २५, २६)। ४ सिप्पिर न [दे] तृण-विशेष, पलाल, पुपाल सिर देखो सिरा (जी १०)। अणिमा आदि योग की शक्ति (ठा १)। ५ (पएण १-पत्र ३३; गा ३३०)। 'सिरय । देखो सिर = शिरस् (कप्फ परह कृतार्थता, कृतकृत्यता (ठा १-पत्र २५, सिप्पी श्री [दे] सूची, सूई (षड्)। "सिरस १, ४–पत्र ६८ प्रौप)। कप्पः प्रौप)। ६ निष्पत्तिः 'न कयाइ दुवि- सिप्पीर देखो सिप्पिर (गा ३३० प्र; पि. णीमो सकजसिद्धि समाणेइ' (उव)। ७ सिरसावत्त वि [शिरसावर्त, शिरस्यावत] २२१)। मस्तक पर प्रदक्षिणा करनेवाला, शिर पर सम्बन्ध (दसनि १, १२२)। ८ छन्द विशेष सिबिर देखो सिविर (पउम १०, २७)। परिभ्रमण करता (णाया १,१--पत्र १३; (पिंग)। गइ स्त्री [गति मुक्ति-स्थान में सिब्भ देखो सिंभ (चंड)। गमन (कप्प; प्रौप; पडि)। गंडिया स्त्री सिभा स्त्री [शिफा] वृक्ष का जटाकार मूल कप्प; प्रौप)। [गण्डिका] ग्रन्य-प्रकरण-विशेष (भग ११, (हे १, २३६)। सिरा स्त्री [शिरा, सिरा] १ रग, नस, नाड़ी ६-पत्र ५२१)। "पुर न [पुर] नगर- सिम स [सिम] सवं, सब (प्रामा)। (णाया १,१३-पत्र १८१ जी १०; जीव विशेष (कुप्र २२)। १)। २ धारा, प्रवाह (कुमाः उप पृ ३६६)।सिम देखो सीमाः 'जाव सिमसंनिहाणं पत्तो सिन्न वि [शीर्ण] जीर्ण, गला हुआ (सुपा नगरस्स बाहिरुजाणे' (सुपा १६२) । सिरि देखो सिरी (कुमा; जी ५७; प्रासू ११; विवे ७० टी)। ५२,८०; कम्म १, १; पि ६८) उत्त सिमसिम अक [सिमसिमाय 1 सिम पु [पुत्र] भारतवर्ष में होनेवाला एक सिन्न देखो सिण्ण = स्विन्न (सुपा ११) सिमसिमाय | सिम' आवाज करना । सिम चक्रवर्ती राजा (सम १५४)। उर न [°पुर] सिन्न स्त्रीन [सैन्य] १मिला हया हाथी-घोड़ा सिमायंति (वजा ८२)। वकृ.सिमसिमंत नगर-विशेष (उप ५५०) । कंठ पु प्रादि । २ सेना का समुदाय (हे १, १५० (गा ५६१ अ)। [कण्ठ] १ शिव, महादेव (कुमा)। २ कुमा)। स्त्री. 'ता अन्नदिणे नयरे पवेढियं सिमिण देखो सुमिण (हे १, ४६; २५६)। पर पवाढय सिामण दखा सुमण (ह १,४६, २५६)- वानरद्वीप का एक राजा (पउम ६, ३)।सत्तुसिन्नाए' (सुर १२, १०४)। सिमिर (अप) देखो सिविर (भवि)। कंत पुन [कान्त] एक देव-विमान (सम सिप्प देखो सिंप । सिप्पइ ( षड्)। सिमिसिम , देखो सिमसिम। बकृ. २७), कंता स्त्री [°कान्ता] १ एक राजसिप्प न [दे] पलाल, पुआल, तुण-विशेष सिमिसिमाअ सिमिसिमंत, सिमिसि पत्नी (पउन ८, १८७)। २ एक कुलकर(दे ८, २८)। माअंत (गा ५६०; पि ५५८)।" पत्नी (सम १५०)। ३ एक राज-कन्या सिप्प न [शिल्प] कारु-कार्य, कारीगरी, सिमिसिमिय वि [सिमिसिमित] 'सिम . (महा) । ४ एक पुष्करिणी (इक), कंदचित्रादि-विज्ञान, कला, हुनर, क्रिया-कुशलता सिम' आवाज करनेवाला (पउम १०५, ५५) लग पु [कन्दलक] पशु-विशेष, एक(पराह १,३-पत्र ५५, उवा, प्रासू८०)। खुरा जानवर की एक जाति (पएण १सिर सक [सृज् ] १ बनाना, निर्माण २ तेजस्काय, अग्नि-संघात । ३ अग्नि का पत्र ४६), करण न [करण] १ न्यायाकरना। २ छोड़ना, त्याग करना । सिरह जीव । ४ पुं. तेजस्काय का अधिष्ठाता देव यालय, न्याय-मन्दिर । २ फैसला (सुपा (पि २३५), सिरामि (विसे ३५७६)। (ठा ५, १-पत्र २६२)+ सिद्ध पुं. ३६१) करणाय वि [करणीय] श्री [°सिद्ध] कला में प्रतिकुशल (प्रावम)। सिर न [शिरस ] १ मस्तक, माथा, सिर करण-संबन्धी (सुपा ३६१), कूड पुन जीव वि [जीव] कारीगर, कला-हुनर (पानः कुमाः गउड)। २ प्रधान, श्रेष्ठ। ३ [कूट] हिमवंत पर्वत का एक शिखर से जीविका-निर्वाह करनेवाला (ठा ५, १ अग्र भाग (हे १, ३२)। क न [क] (राज)। खंड न [खण्ड] चन्दन (सुर पत्र ३०३)। शिरस्त्राण, मस्तक का बख्तर (दे ५, ३१, २, ५६; कप्पू)। गरण देखो करण (सुपा कुमाः कुप्र २६२). ताण, त्ताण न ४२५), गीव घुग्रीव] राक्षस-वंश का सिप्पा स्त्री [सिप्रा] नदी-विशेष, जो उजैन [त्राण] वहो पूर्वोक्त अर्थ (कुमाः स ३८५)।- एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६१)। के पास से गुजरती है (स २६३; उप पृ 'बत्थि स्त्री [ बस्ति चिकित्सा-विशेष, सिर 'गुत्त पु [गुप्त एक जैन महर्षि (कप्प)। २१८; कुप्र ५०)। में चम-कोश देकर उसमें संस्कृत तैल आदि घर न [गृह] भंडार, खजाना (गाया १, सिप्पि वि [शिल्पिन] कारीगर, हुनरी, पूरने का उपचार (विपा १,१-पत्र १४), १.-पत्र ५३; सूअनि ५५) घरिअ वि चित्र आदि कला में कुशल (प्रौप; मा ४) 'सिरावेढेहि (?सिरबत्थोहि)य' (णाया १, [गृहिक] भंडारी, खजानची (विसे सिप्पि स्त्री [शुक्ति] सीप, घोंघा (हे २, १३–पत्र १८१) मणि देखो सिरो-मणि १४२५)। 'चंद पुं["चन्द्र] १ एक प्रसिद्ध १३८; उवा; षड् ; कुमाः प्रासू ३६ पि (सुपा ५३२), 'य पुं[ज] केश, बाल जैनाचार्य और ग्रन्थकार (पव ४६; सुपा (भगा कप्पः प्रौप; स ५७८)। हर न ६५८) । २ ऐरवत क्षेत्र में होनेवाले एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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