Book Title: Nrutyaratna Kosh Part 02
Author(s): Rasiklal C Parikh
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 5
________________ की गई थी, क्योंकि उसके लेखक का यह दावा है कि इस ग्रन्थ के प्रणयन में उसका लक्ष्य नाट्यवेद की प्राचीन-परंपरा का पुनरुद्धार करना है।"" डा० प्रेमलता शर्मा का यह अभिमत भारतीय संगीत के प्राद्याचार्य भरत- मुनि' के उस कथन की याद दिलाता है जिसके अनुसार नाटयवेद का एकमात्र . उद्देश्य वेद-व्यवहार को सार्ववणिक बनाना होता है । अत एव संगोतराज का अध्ययन जहां भारतीय संस्कृति की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है वहां वह एक ___ अत्यन्त कठिन कार्य भी है। जैसा कि डा० प्रेमलता शर्मा ने कहा है, संगीत शास्त्र तथ वैदिक-दर्शन की द्विविध दृष्टि से इस ग्रन्थ की सम्यक् व्याख्या करना - एक स्वतंत्र शोध का विषय हो सकता है। डा० शर्मा के शब्दों में "इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय संगीतशास्त्र के ग्रन्थों में संगीतराज का प्रमुख स्थान .. होगा और कई दृष्टियों से, इस विषय के अन्य सभी पूर्ववर्ती ग्रन्थ इसके सामने श्रीहीन हो जायेंगे ।.........इसके कई विषय संभवतः शोध विद्यार्थियों के लिए - जो कि संगीत और वेद दोनों से पूर्णतया परिचित हैं, निरन्तर सामग्री मिलती ... रहेगी ।". . ............. महाराणा कुम्भा इस दृष्टि से संगीतराज के कर्ता को भारतवर्ष के इतिहास में, न केवल एक प्रसिद्ध शासक होने के नाते, अपितु एक महान् लेखक एवं प्रतिभावान् विचारक के रूप में भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। महाराणा कुम्भा के : व्यक्तित्व के विषय में डा० गौरीशंकर हीराचंद ओझा, श्रीहरविलास शारदा, डा० .. प्रेमलता शर्मा और इस ग्रन्थ के विद्वान् सम्पादक ने बहुत कुछ कहा है, जिसको फिर से दुहराना व्यर्थ होगा, परन्तु यहां पर इतना कहना अनुचित न होगा कि : महाराणा कुम्भा का व्यक्तित्व अत्यन्त असाधारण था और उसका मूल्यांकन असाधारण स्तर पर ही किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इस प्रकार के व्यक्तित्व को साधारण मापदंड से देखने में भूल हो जाना निश्चित है । महाराणा कुम्भा के व्यक्तित्व की सर्वोत्कृष्ट विशेषता उनकी बहुमुखी जिज्ञासा में निहित है जिसको मानने से कोई भी आलोचक इनकार नहीं कर सकता। यदि यह भी मान लिया जाय कि उसने कोई भी ग्रन्थ नहीं लिखा, तो भी यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कुम्भा ने नाट्यशास्त्र, स्थापत्य, काव्यशास्त्र, धर्म, ... १. संगीतराज, जिल्द १, भूमिका पृ० ६ । २. नाट्यशास्त्र, प्रयम अध्याय, पद्य १२ । ..

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