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(नाडी प्रकाश ९०)
अन्यच
स्त्रीणां वाम करे स्वीरणा बाग करे नाडी पुरवा गांच दक्षिणो परीक्षेत विभिषक सम्यक धृत्वा धृत्वा विमुच्यच ॥ २३ ॥ टीका ॥ स्त्री के वाम कर की नाड़ी देखनी चाहिये और पुरुष के दाहिने हाथ की इस तरह से वैद्य परीक्षा करें और अंगुलि यो को बार बार घर २ कर देखे ॥ २३ ॥
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करस्यां गुट मूले याध मनी जीवसा क्षिणी ॥ तचेष्टया सखं दुःखं ज्ञेयं का यस्य पहिते ॥ २४ ॥
टीका । अगूठे के जड़में अर्थात् पहुंच में जो नाडी चलती है वो जीव की साक्षी है उस की चेष्टा को देख कर वैद्य जो है सो सुख दुख जान लें ॥ २४ ॥
वाताधि का हे मध्ये त्वनेथहति पितला ॥ प्रेते श्लेष्म गति भैया मिश्रतो मिश्रता भवत् ॥ २४ ॥
टीका । वात अधिक होने से नाडी मध्यमें चलती है और पित की नाड़ी आदि में चलती है और कफ की नाडी अंत में वहति है। और जैसा जैसा दोष का मेल होय है वैसी वैसी चाल नाडी चल ती है अर्थात् वात पित की चाल चलती है और कफ पित्त में क फ पित की चाल चलती है और कफ बात की चाल चलती है । तथा विदोष में तीनों दोषों की मिली हुई चाल नाडी चलती है :
॥ २५ ॥
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