Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 96
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mara (नाडीप्रकार) मृत्यु होय ॥५२॥ अति सूक्ष्माचवेगावा शीतला च भवे द्यदि तदा वैद्यो विजानीया दयं रोगी विनश्यति॥५३॥ टीका- जिसरोगी की नाडी प्रति सूक्ष्म चले अथवा कति वेग से चलती होय तो वैद्य अपने मनमेंजान लेय कि यह रोगी जसर मरेगा॥५॥ अन्यच महे नाडी चहे तादाकदाचिच्छी तला वहेत.॥आयाति पिच्छला: स्वेदःश रावसजीवति॥५४॥ टीका-जिस रोगी की नाडी अगाडी से अति शीघ्र चले और कदाचित ठंडी भी होय और शरीर मेंसे चिकना पसीना निक ले ऐसा रोगी सात दिन जीवे॥ ५४॥ प्रन्यच मंदंमन्द शिथिल शिथिलं व्याकुलं व्याकुलंवा स्थित्वा स्थित्वावहतिध मनींयाति सूक्ष्मा नरायणा ॥ नित्य स्था नात्सर्वलति पुनर प्यं मूली से स्पृहा भावैरेववह बिधि तैरेस चियावे त्वताध्या ॥५४॥ टीका-जिसरोगी की नाडी मंद मंद मोर शिथिल शिथिल यन | - - - - - - For Private and Personal Use Only

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