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मुहता नैणसीरी ख्यात
पीठ दिया पातसाह बैठो छ । नं रिणमलजीर ग्राखडी हुती जो पुठ दियै ताहरा वार वाहै नही । ताहरां घोड़ो डकाय हाथीरी वरावर प्राय फेटसू पातसाहनू उठाय लियो । लेने कनै सिला थी तै ऊपर पटकियो । सुपातसाहरो जीव नीसर गयो । सुपातसाह ईयँ विध मारियो ।
पछे राणो कुभो, रिणमलजी मांडवगढ ऊपर ग्राया । ताहरां भीतरला पण साको राखियो । ताहरां महिषै पमारनू वा कह्यो - 'हमै म्हासू राखियो न जावै ।" ताहरां महिप कह्यो - 'हमें मोनू पकड मता देवो ।” ताहरां इहा कह्यो राव रिणमलजीनू - 'म्हे पकड न देवा ।" ताहरा रावजी कह्यो - ' म्हानू देखाळ देवो ।" ताहरां कोटरं दरवाजे फोज प्राय ऊभी रही । श्रर महिपो घोडै चढि दर
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वाजे डाव कानी घोडे चढियो हीज कूदियो । 10 जिकै ठोड़सू कूदियो हुतो, तिकण ठोडरो नांम पाखड कहीजै छै ।" पछै गयो । पछे महिपैनू सिकोतरीरो वर हुन । 22
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इति वात महमद राव रिणमलजी मारियो तं समेरी वात सपूर्ण ॥ ॥ श्रीरस्तु ॥
रिमलजी पोछेको और फिर कर देखते है तो हाथी पर पोछेकी ओर पीठ दिए हुए बादशाह बैठा हुआ है । 2 रिगमलजीकी यह प्रतिज्ञा थी कि जो पीठ दे दे तो उस पर वार नही करना । 3 तब उन्होंने घोडेको लंघवा कर और हाथीके बराबर आकर वरछीकी एक फेटसे बादशाहको उठा लिया । 4 लेकर के पासकी एक सिला पर दे पटका सो उसका तो प्राणान हो गया। इस प्रकार वादशाहको मार दिया। 5 तब प्रदर वालोको भी भय हुआ । 6 ग्रब हमने तुम नही रखे जा मकते । 7 श्रव मुझे पकड कर उनके सुपुर्द नही करना । 8 तब इन्होंने रात्र रिगमलजीको कहा - 'हम महिपेको पकड कर आपको नहीं देंगे ।' 6 तव गवजीने कहा 'हमको उसे दिखा दो ।' 10 महिपा घोड पर चढ कर दरवाजेकी वायी ग्रीरमे घोड पर चढा हुग्रा ही कूद गया । II जिस जगह से वह कूदा था उस जगह का नाम 'पास' कहा जाता है । 12 बादमे महिपेको सिकोतरीका वरदान मिला था ।