Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसकी ग्रहण विधि, पालन तथा फ़ल (मोक्ष) । यह धर्म पुरुषार्थ भी सतत, विधिपूर्वक, हृदय के बहुमानपूवक, योग्य समय पर तथा जीवन में प्रौचित्य सहित होना चाहिये। तभी सबीज क्रिया की प्राप्ति तथा पालन से परंपरा द्वारा मोक्षफल प्राप्त होगा। सावधानी होशियारी से दोष दूर करके गुणों की प्राप्ति का प्रयत्न करें। अरिहत भगवान को प्रथम नमस्कार करके सूत्रकार मंगलाचरण करते हैं । वे वीतराग - राग द्वेष रहित हैं, उनका मोह क्षीण हो गया है । जिनेश्वर देवेन्द्रों से पूजित हैं तथा यथास्थित वस्तुवादी याने वस्तु जैसी असल में है वैसी ही कहने वाले हैं। राग द्वेष से भी ज्यादा खतरनाक है। 'राग नहीं करना', ऐसा जैनशासन में ही कहा है, अन्यत्र नहीं। द्वष घटता है. पर राग बढता है । द्वेष में जो दुर्ध्यान होता है, संगमें उससे ज्यादा दुर्ध्यान होता हैं। राग द्वेष का बाप है। राग फूक मारकर काटने वाले चूहे जैसा है । क्रोधादि चारों कषाय राग की सेवा में । पाठों कर्मों की जड मोहनीय और [२३] For Private And Personal Use Only

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