Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया हो, सूक्ष्म या बादर, मन वचन कायासे किया, करवाया या किये को अच्छा जाना हो, राग द्वेष या मोह से, इस जन्म में या जन्मांतर में जो दुष्कृत किया हो, जो ऐसा आचरण किया हो, वह सब हित, निन्द्य तथा त्याज्य है (क्योंकि वह सम्यक धर्म से भिन्न तथा विपरीत है ।) अतः उसका मैं पुन: पुन: मिच्छामि दुक्कड देता हूँ। मिथ्या दुष्कृत मूल में तीन बार कहने का अर्थ यही है कि इस पर खूब भार दिया जाय तथा वह बार बार किया जाय । यह सब बात मैंने हमारे कल्याणमित्र - मात्र परहित चिंतक - गुरुके वचनों से, अरिहंत भगवत के वचनों से (शास्त्रसे) जाना है। उनके हितवचनानुसार यह गलत आचरण त्याज्य और दुष्कृत्य है, ऐसी मुझे श्रद्धा है, मनमें यह ठस गया (जंच गया) है । अत: मेरे सब दुष्कृत मिथ्या हों, अनेकशः मिथ्या हों। ये दुष्कृत अच्छी तरह समझ लेने चाहिये । इन सब अरिहतादि चार के प्रति अवहेलना, अविनय, अनादर, प्राज्ञा की अवहेलना, विराधना, अश्रद्धा, अशुद्ध प्ररूपणा आदि सब विपरीत पाचरण (दुष्कृत) For Private And Personal Use Only

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