Book Title: Mokshmarg Ki Purnata
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 5
________________ मनोगत 'मोक्षमार्ग की पूर्णता' नामक इस कृतिकीपूर्णतासे मुझे सात्विक आनंदहोरहा है। श्री टोडरमल जैन सिद्धान्त महाविद्यालयकीदैनिकशास्त्रसभा में आचार्य अमृतचन्द्र कृत “पुरुषार्थसिद्ध्युपाय" ग्रन्थके श्लोकक्रमांक २१२, २१३एवं २१४ पर प्रवचन करने का जब मुझे अवसर प्राप्त हुआ, तब मैंने मूल श्लोक, अर्थ एवं इसकी हिन्दी टीका का सूक्ष्मता से अध्ययन किया। इससे मोक्षमार्ग की उत्पत्तिवपूर्णता सम्बन्धी विशिष्ट विषय पर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ। सभी स्वाध्यायी यह तो जानते ही हैं कि श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र गुण के सम्यक् परिणमन की उत्पत्ति का स्थान चुतर्थ गुणस्थान होने पर भी इनकी पूर्णता का स्थान अलग-अलग ही है। जैसे श्रद्धा गुण का सम्यक् परिणमन व पूर्णता दोनों एक साथ चौथे गुणस्थान में होते हैं। ज्ञान गुण का सम्यक्पना चौथे गुणस्थान में उत्पन्न होता है, लेकिन पूर्णता तेरहवें गुणस्थान में होती है। इसी तरह चारित्र गुण का सम्यक्परिणमन भी यद्यपि चौथे गुणस्थान में होता है, तथापि पूर्णता सिद्धदशा के प्रथम समय में होती है। तात्पर्य यह है कि सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र की उत्पत्ति युगपत् होने पर भी ज्ञान व चारित्र की पूर्णता अक्रम तथा क्रमशः ही होती है। यह विषय स्पष्ट समझ में आने पर मुझे विशेष आनन्द हुआ। सभी साधर्मियों को भी यह विषय समझ में आवें-इस उद्देश्य से इसे लिखकर प्रकाशित करने की भावना हुई। ___ इस कृति में तीन खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में मोक्षमार्ग की पूर्णता' - इस विषय को आगम के आधार से अपनी भाषा में स्पष्ट करने का मैंने प्रयास किया है। इस कृति में जिस 'सम्यग्दर्शन' किताब के उद्धरण दिये हैं, वह किताब श्री दि. जैन कुन्दकुन्द कहान ग्रंथमाला आग्रा से प्रकाशित है। सूज्ञ पाठकों से निवेदन है कि इस सम्बन्ध में कोई विशेष सुझाव हो तो मुझे अवश्य देवें। द्वितीय खण्ड में आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी के उद्गार दिये हैं - जो ज्ञानगोष्ठी' नामक पुस्तक से संकलित हैं। तृतीय खण्ड में रत्नत्रय की आगमोक्त परिभाषाएँ आदि दी हैं। सुलभता से कठिनता और इस नियम का अनुसरण करने के अभिप्राय से उपर्युक्त क्रम रखा है। इस कृति को पूर्ण करने हेतु प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से जिन-जिन महानुभावों का सहयोग प्राप्त हुआ है - उन सभी का मैं हार्दिक आभारी हूँ। -ब्र. यशपाल जैन, एम.ए.

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