Book Title: Mokshmala
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 9
________________ पहेली आवृत्तिनी प्रस्तावना. शिक्षण पद्धति अने मुख मुद्रा. आ एक स्यादवाद तत्वाव बोध वृक्षतुं बीज छे. आ ग्रंथ तत्व पामवानी जीज्ञासा उत्पन्न करी शके एबुं एमां कंइ अंशे पण दैवत रहुं छे ए सम्भावथी कहुं छउं. पाठक अने वांचक वर्गने मुख्य भलामण ए छे के शिक्षापाठ पाठे करवा करतां जेम बने तेम मनन करवा, तेनां तात्पर्य अनुभववा, जेमनी समजणमां न आवता होय तेमणे ज्ञाता शिक्षक के मुनियोथी समजवा, अने ए योगवाइ न होय तो पांच सात वखत ते पागे वांची जवा एक पाठ वांची गया पछी अर्ध घडी ते पर विचार करी अंत:करणने पूछq के शुं तात्पर्य मळ्युं ? ते तात्पर्यमांथी हेय क्षेय अने उपादेय शुं छे ? एम करवाथी आखो ग्रंथ समनी शकाशे, हृदय कोमळ थशे विचार शक्ति खीलशे; अने जैन तत्वपर रुडी श्रद्धा थशे. आग्रंथ कंइ पठन करवा रुप नथी पण मनन करवा रुप छे. अर्थरुप केळवणी एमां योजी छे ते योजना वालाववोध रुप छे. विवेचन अने प्रज्ञानवोध भाग भिन्न छे आ एमांनो एक ककडो छे, छतां सामान्य सत्वरुप छे. स्वभाषा संबंधीजेने सारुं ज्ञान छे, अने नवतत्व तेमज सामान्य प्रकरण ग्रंथो जे समजी शकेछ तेवाओने आ ग्रंथ विशेष वोध दायक थशे. आटली तो अवश्य भलामण छे के

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