Book Title: Mokshmala
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 11
________________ मुझ जीवोमव्यस्थताथी पठन-मनन करशे, तो तेओने आ ग्रंथ बहु लाभकारी थशे. बहु उंडा उतरतां आ मोक्षमाळा मोसनां कारण रुप थइ पडशे. मध्यस्थताथी एमां तत्वज्ञान अने शिल बोधवानो उद्देश छे. वांचनारने अने भणनारने मुख्य भलामण ए छे के आशिक्षापाठ एकला पाठे करवा करतां जेम वने तेम मनन करवा अने तेना तात्पर्य अनुभवत्रांजे न समजे तेणे जाणनार पासेथी विनय पूर्वक समजवानो उद्यम करवो. एवी योगवाइ न मळे तो ए पाठो पांच सातवार शांति पूर्वक वांची जवा. एक पाठ वांची गया पछी अर्ध घडी ए उपर विचार करी मनने पूछg के शुं समजायुं ? जे स. मजायु तेमां हेय (छांडवा योग्य,) ज्ञेय (जाणवा योग्य) अने उपादेय (आदरवा योग्य) छे ? आम करवायी आखो ग्रंथ समनी शकाशे; हृदय कोमळ थशे, विचार शक्ति खील अने विनराग मार्ग उपर रुडी श्रद्धा थशे. आ ग्रंथ एकलो वांची जवानो नथी. एमां मनन करवानी जरुर छ, अर्थरुपी केळवणी एमां योजीछे, ए योजना वालाववोध छ; जे तत्व जीशामु वाल विवेकियोने बहु उपयोगी छे, विवेचन अने प्रज्ञाववोध भाग भिन्नछे, आ पुस्तक एमांनो एक खंडछे छतां सामान्य तत्वरुप छे. गुजराती भापानुं जेने सारं ज्ञानछे अने नवतत्वादि सामान्य प्रकरणो जे समनी गकेछे एओने आ ग्रंथ विशेष वोध दायक थशे. आ ग्रंथनी योजनानो एक हेतु उछरता युवा.

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