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राव जोधाजी वि० सं० १५२४ ( ई० सन् १४६७ ) के क़रीब राव जोधाजी के पुत्र करमसी, रायपाल और वणवीर नागोर के शासक कायमखाँनी फ़तनख़ाँ के पास पहुँचे । उसने करमसी को खींवसर और रायपाल को आसोप जागीर में देकर अपने पास रख लिया । वणवीर अपने बड़े भाई करमसी के साथ रहा । परंतु जोधाजी को सूचना मिलने पर इन्होंने उन्हें फ़तनख़ाँ की दी हुई जागीरों को छोड़कर वापस चले आने की आज्ञा लिख भेजी । इसलिये तीनों भाई फ़तनख़ाँ का साथ छोड़ बीकाजी के पास चले गए । परंतु फ़तनख़ाँ ने इसमें अपना अपमान समझा, और इसीसे क्रुद्ध होकर वह रावजी की प्रजा पर अत्याचार करने लगा । यह देख रावजी ने नागोर पर चढ़ाई की । फ़तनख़ाँ हारकर भूँझनू की तरफ़ भागा, और रावजी ने नागोर पर अधिकार करने के बाद अपनी तरफ़ से, करमसी को, खींवसर और रायपाल को आसोप की जागीर दी ।
वि० सं० १५२५ ( ई० सन् १४६८ ) में, मेड़ते का प्रबंध ठीक हो जाने पर, वरसिंह तो वहां का शासक बना, और दूदा अपने भाई बीकाजी के पास चला गया ।
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इसी वर्ष महाराना कुम्भाजी के पुत्र ऊदाजी अपने पिता को मारकर मेवाड़ की गद्दी पर बैठे । परंतु उन्होंने सोचा कि जिस तरह रणमल्लजी ने आकर मोकलजी के हत्याकारियों से बदला लिया था, उसी तरह कहीं जोधाजी आकर कुम्भाजी की हत्या का बदला लेने का उद्योग करने लगे, तो मेवाड़ के सरदारों को, जो मुझसे पहले ही अप्रसन्न हो रहे हैं, और भी मौक़ा मिल जायगा । यह सोच उन्होंने जोधाजी को, शांत रखने के लिये, अजमेर और सांभर के प्रांत सौंप दिएं ।
छापर द्रोणपुर के स्वामी मेघा के ( वि० सं० १५३० = ई० सन् १४७३ में ) मरने पर उसका पुत्र वैरसल वहां का स्वामी हुआ । परंतु वह एक निर्बल शासक था । इसी से उसके भाई-बंधु, स्वाधीन होकर, इधर-उधर लूट-मार करने लगे । यह देख वि० सं० १५३१ ( ई० सन् १४७४ ) में जोधाजी ने उन पर चढ़ाई की। वैस
१. अजमेर के लिये मेवाड़ वालों और मुसलमानों के बीच सदा ही झगड़ा रहता था । भ है, ऊदाजी ने इस फंझट से छूटने के लिये ही उसे जोधाजी को दे दिया हो । सांभर के चौहान शासक अजमेर वालों के अधीन थे । इससे शायद अजमेर के साथ ही वह प्रांत भी इनको मिल गया हो ।
ख्यातों में लिखा है कि वरसिंह ने एक बार सांभर के चौहानों को हराया था ।
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