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मारवाड़ का इतिहास न उसे कहला दिया कि आज रात के पिछले पहर मैं शाहजादे मुहम्मद की सेना पर पीछे से आक्रमण कर दूंगा । तुम भी उसी समय उस पर सामने से टूट पड़ना । इसप्रकार आलमगीर की सेना का बल आसानी से नष्ट हो जायगा । इसी प्रतिज्ञा के अनुसार महाराज ने उसी रात को राठोड़ महेशदास, रामसिंह और हरराम तथा चौहान बलदेव आदि को साथ लेकर मुहम्मद सुलतान की सेना के पिछले भाग पर आक्रमण कर दिया । इससे घबराकर वह इधर-उधर भागने लगी । यह देख महाराज ने आगे बढ़ शाही सेना का खजाना और सामान लूट लिया। परन्तु शुजा के निश्चित समय पर आक्रमण न कर सकने के कारण अंत में यह बादशाही सेना की पहुँच से कुछ दूर हटकर ठहर गएं, तथा प्रातःकाल होते-होते मारवाड़ की तरफ रवाना हो गए।
यद्यपि इसी वीच शुजा ने भी आक्रमण कर घबराई हुई आलमगीरी सेना में और भी हलचल मचा दी और निकट था कि वह विजय प्राप्त कर लेता, परन्तु ऐसे ही समय अलीवर्दीखाँ के कहने से शुजा हाथी से उतरकर घोड़े पर सवार हो गया । इससे अपने मालिक को यथास्थान न देख उसकी सेना ने उसे मारा गया समझ लिया और वह मैदान से भाग खड़ी हुई । इस पर शुजा को भी प्राण लेकर भागना पड़ा।
बनियर लिखता है कि जिस समय महाराज जसवंतसिंहजी मारवाड़ की तरफ जाते हुए आगरे पहुँचे, उस समय औरङ्गजेब का मामू शाइस्ताखाँ, जो उस समय आगरे की देखभाल के लिये नियत था, इतना घबरा गया कि तत्काल विष पान कर आत्महत्या कर लेने के लिये उद्यत हो गया। यह देख बादशाही अंतःपुर की बेगमों ने उसके हाथ से विषपात्र छीनकर उसके प्राणों की रक्षा की।
१. पालमगीरनामा, पृ० २५४ स २५६ । उसमें यह भी लिखा है कि जसवंतसिंह के इस
हमले से आधी के करीब बादशाही फौज बिखर गई थी । मासिरे आलमगीरी से भी
इसकी पुष्टि होती है (देखो पृ० १३-१४)। २. बर्नियर की भारत-यात्रा, भा० १, पृ० ८१-८३ । ३. ख्यातों में लिखा है कि यह मार्ग के नगरों को लूटते हुए आगरे के पास से होकर गए
थे । मार्ग में इन्हें जयपुर-नरेश जयसिंहजी ने औरंगजेब का भय दिखलाकर समझाने की चेष्टा की थी । परन्तु इन्होंने उसकी कुछ भी परवा नहीं की।
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