Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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वछावतारी वंसावली संतोष्यो जोधो वछइ सांमि, काहूनी आयो विषइ कामि । जोधइ राउ कुंभो कीयो जेर, नामी पिसुण कीयौ योधनेर । जोधइ राउ पूरी मति जाणि, आरधीयो मण्डोवर वच्छो आणि । वडहत्थ जोध वीको वधारि, सांखलां घरां सोह दीन्हा सार ।। वछराज साथि दीधो बडिम्म, जांणियो बुद्धिकै वास जिम्म । सहइ मुत्त वीकरा वछइ साह, सगलो समत्थ लीयो संवाहि ॥ भाडंग मारि नरसिंघ भेलि, जंगम्म राउ वीकइ लीयो जेलि। नरहर प्रजा लिंहि सार नेस, देवटे लीया मोहिले देस ॥ पवाडा वीकढे नही पार, हठा मल्ल सीम घाली हिसार । दावट्टे पिसुन पालीया हुत्त, संबरीया काम बच्छराज सुत्त । जोधो राउ सरग हुओ जाणि, ऊर्यों वीकू राउ छत्र आणि । मुलतांण धणी दीन्हा मुहत्त, जगमैक वछइ कीयो जुगत्त ॥ मुहवत मया करि मुलतांण, सनमान्यो मुहतो सुलताण । सेत्रुजई फरस्यो आदिसांमि, प्रभु पूज नेमि गिरनारि ग्रामि ॥ जादवा राय भेटयो जुगत्त, त्याग करि लाहणी एक तत्त । बछराज धर्म कीयो विशाल, समपीया गरत्थ विरदे सुगाल ॥ करमसी सिरखा जाया कंठीर, वरसिंघ रत्तो नरसिंघ वीर । राउ वीकतणइ करमसी राज, सहु शत्रु मित्र सार सकाज ॥ सातल नई राउलखांन सोट, वीकम्म कहै कांइ करौ ओट । तिहुं रावास्युं हुइ छै तोट, करमसी करो जिम हुवइ कोट ॥ कहिजइ छई खांना भीड काय, जपीयो जु वेलो खान जाय । महविरुद अनेक करमद(ट) प्रधान, मानीया खान महुता दे मान ॥ उलूंखांन गढ अजमेर, निश्चल कीयो वीकइ वीकनेर । महुतइ द्रव्य खरच्यो मनइ मोट, करमसी कीयो वीकपुर कोट ॥ प्रथमादि आदि पूर्यो प्रमाण, वासीयो नगर बांधीयो वखांण । समपीया ऊण जीवार साह, बइताल जीतो उभइ अबांह ॥ मानीयो नरो मंत्रिव धन्न, कर टीको दीन्हो लूणकरण । गोरहरो धायो करन जंग, भिड खेतखान महमदभंग ॥ करण राउ आगलि करमसीह, आ बधई बेव भागा अबीह । दावटे करन हींसार देस, नीजलइ नयर पाजलई नेस ॥
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