Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 121
________________ ११२ मंत्री श्व र कर्मचन्द्र व च्छावत सुयश अरे बोहित्रावंश उदयो रे भाण, कर्मचन्द्र मंत्री अवसरजाण । अरे जेहना रे पुत्ररतन वे जाणूं, भागचंद लखमीचंद वखाणं ॥ अरे उत्तम कहियइ ए परिवार, जित नित करणी करइ रे उदार । अरे प्रतपर जां लगि भ्रू रवि चंद, सपरिवार करउ मंत्र' आणंद ॥ अरे हिव जुगवर श्रीजिनचन्द्र सूरीश, आचारिज जिनसिंह मुनीश । अरे श्री अकबर साहिब मन रीजइ, दिन दिन ओच्छव चढता कीजइ ॥ १ इससे ज्ञात होता है कि इस रासकी रचना कर्मचन्द्रजीकी विद्यमानतामें ही हुई थी । अतः यह भी प्रमाणिक साधनों में है । Jain Education International ५० मंत्रीश्व र कर्मचन्द्र व च्छा व त सुयश । हा राखि हो मेदिनी मरती, बहसघण बड वीर । ऊदाहरा आधार अन्न दे, भुजे ताहरै भार ॥ भरतार मेल्हे जाइ भामिणी, पेट कजि परदेश । ऊबारिया कर्मचन्द ओले, डूलता दस देश ॥ निजपुरे नगरे बडे गामे, दियै न कोइ दान । तदि कोठार कर्मचन्द करि, भुगता धींग सुपै धान || जग छेल मुहतै काज, जोइ सुध न देनै सांक । करमचंदतणे परसाद, कितरा सलत रहिया रांक ।। दातार घणा दस देश दुथीया, घणुं समपइ सुद्रव्य घणा । गुण्डीर मनि करता गयवर, तूं आप संग्रामतणा || जग दातार केता जिणशासन, अवसर देखिवि द्रवै आथि । कवि मोटा तुं जेम करमचंद, हाथी फिणहि न दीना हाथि जिन सदीह वहै तल जोडे करि दाखवि सनूरा कंध । तूं करमचंद त्यागूआं तूठौ, गज इसडा आपै जगबंध || सामि सनाह नगाहर सूरज, चलै न कदही ग्रहियौ चाल । समधरनै करमचंद समापै, सारसीयां करता खंडाल ॥ ऊदा नागदेव बच्छराज, इणि कुल घडन सत्रहर घाट । मेदिनी तिलक तूं करमचंद, मुंहता प्रगटियौ तिणि पाट | गजबंध बाधा गहडि गाजै, ब्रहस घणा छुटवालि । चक्रवर्त्ति सांगातणि, चाउरि चंद बइठौ चालि || हुज दार हाल हुकम हाले गणित नावे गाम । मानियो राउ कल्याण, मुंहता मेर जिवडी माम ॥ चाढियौ चांपा जुन रचावौ वंश सघले वांन । जग फोडि समधर सुकवि, जयै राज कर राजान ॥ For Private & Personal Use Only ५१ ५२ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122