Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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२८
व छा च तांरी वं सावली
१०३ लाह -- लांहि सोभाग लिद्ध, कृत उत्तम बोहिथ हरइ किद्ध । पाट तिण प्रतपियो तेजपाल, उदयो ज-बोहिथहर उजाल||१९ यह गुज्जर मिलीयो करै पेस, रिध घणी दिद्ध रीज्यो नरेस । लियो दे पाट किता लाष, सोहर जु हुई मिलि साप ॥ २० सेत्रंजइ यारंभ करे संघ, मिथिमा धिमेलि सज्जिया पंग। सोवन मुहर मोदिक सहित्त, चव भरीय सुमापी थाल चित्त ॥२१ तीरथ करे आतंमतार, सफलो जनम कियो संसार । जिनधमतणो ततसार जाण, पख्यो वलि पूरब दिसि पयाण ॥ २२ अवियो मेछ अस पडि अपार, सांकले हुउ वाजियो सार। मेछ घड तणो मुंका विमाण, पाडिया पिसण जीत्या पठाण।।२३ जिणराय तथा तीरथ जुहार, संमेतसिषर संपूज सार। लाहणां परचिया कोडिलाष, भल सुजस भणायो भाष भाष॥ २४ आवियो सुजस पाटे अपार, सुभ बोल कीयो सहुऔ संसार । पाटणे पाट दीधो पवित्त, जिनकुसलसरि थापे जुगत्ति ॥ २५ पहि रायसिंघ पूरे प्रमाण, परचिया द्रव्य लप कोडि षाण । सुजपाति मंडि दानसाल, वडहथ परचे द्रव्य विशाल॥ २६
................। वाजिला घर बइठो तिणइ ठाम, भालिय लघु आदश तपै भात ॥ २७ विमलगिरि पूज वधायो विशेष, लोहणां दीध घर घर अलेप ।
ससमत्थ सुपण वील्हा सुपुत्त, बोल्यावो कडवे जस बहुत्त ॥ पुह पाटण दीधो मंत्र पेषि, सहु सत्त मित्र जाणइ विशेषि । चित्रोड उपरइ लइ चाल, वडवडा जोध रावत विशाल ॥२९ मालवइ धणी सेना हमीर, हालीयो सेन हय घट्ट पीर । सामिधर्म गिणे कुडम्बे समत्थ, आवीयो चाड चित्रोड अत्थ ॥३० मेवाड धणी धइ बहुत मान, पतिसाह कन्हइ रठ्यो प्रधान । सह शत्रु-मित्र आणे सगाह परब्बियो मांडण पातिसाह ॥३१ राषियो राजरिधरो परांण, वंश वधायो वोहिथहर वषाण। चित्तोड धणी ऊजलै चित्त, मंत्रवी विसद दीन्हो महुत्त ॥३२ पूरइ निषत्र सामइ धर्मपाल, आवियो विरुद मोटा उजाल। पुर पाटण सगले देस सार, ईषीयो धर्म पाली अमार॥३३
जीजीयो काट जस लियो जग्ग, ऊजलो लोक कियो अदग्ग । जिनराजसूरि बइसाणि पाट, परचिया द्रिव्य बहु विसद पाटि ॥ ५ गढ सेतुंज पूजण गिरनारि, पामिया गर घबे जस अपार । जिग-दे लाहिण गाम गाम, सनाथ करे पूजिया सामि ।। जिनबिंब भरे जानो जनम्म, कीया प्रसाद सुधार कर्म । मेर प्रमाण मोटो मुहत्त, कडा वत किया बडबडा तत्त । तीरथ करे कीया सुत्याग, जिनधमतणां जागीया जाग । सुघर तिण हुऊ मांडण सुपुत्त, जिण कीयो भ्रम जाणी जुगत्त ।। वलि कीयो महेवई तणो वास, उदओ सपुत्र उदयो आकास । नागदेव चढायो वंशनीर, सूर तेम तेज उदार धीर ।। जेसल कीयो तिण घरे जम्म, कीया सुकृत उजलइ कम्म । दीपीयो मंडोवर आवि देस, नृप बडौ जाणि रिणमल्ल नरेस ।। जेसल घरि जायो वछो जांणि, पूरई नखत्त पूरई प्रमाणि । रिणमल्ल वह्यो कुम्भेण राण, अधर्म कीयो मन पाप आणि ।। ए योध निसरीयो आप त्राण, जांगलू देस आयो युवान । वछराज जोधसुं विषइ वग्ग, जागीया सामि धर्मबोल जग्ग ।।
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