Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश
इम परीक्षा में भी बाहुबलि श्रेष्ठ निकले । राजा मे बुद्धिमत्ता और प्रत्युत्पन्न मतित्व होना चाहिये-इस प्रतियोगिता में भी वाहुबलि विजयी हुए । सामन्तो को अपने अधीन करके साम्नाज्य स्थापित करना चक्रवर्ती राजा का प्रधान गुण है इस कसौटी पर भी बाहुवलि भरत की अपेक्षा खरे निकले । राजा मे दूरदर्शिता तो होनी चाहिये--इस गुण मे भी बाहुबलि ने भरत की अपेक्षा अपनी ही योग्यता सिद्ध की। अव रहा युद्ध । राजापो के पारस्परिक द्वेष के कारण प्रजा की भी हानि हो यह न्याय सम्मत नहीं है। यह सोचकर सभी दरवारियो ने सैन्य युद्ध के लिए मना किया। उस समय के लोग इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि जब दो भाईयों के पक्ष को लेकर प्रजा मे दो दल हो जाते है तो समस्त जाति का नाश हो जाता है । इसलिए द्वन्द्व युद्ध का निश्चय किया गया। फिर क्या था ? वाहु-युद्ध, दण्ड (गदा) युद्ध, मल्ल युद्व आदि अनेक प्रकार के युद्ध हुए । इसमे तो बाहुवलि आसानी से विजयी होने वाले थे ही। अब सव प्रकार से बाहुबलि की श्रेष्ठता सिद्ध हो गई। लोग उनकी जय बोलने लगे। यह देख कर भरत खीझ गये । उन्होने आपा (अपनापन) भूल कर भाई को मार डालने का इरादा किया और वाहुबलि पर प्रहार कर दिया । भरत की राज्य लिप्सा यहाँ तक बढ जायगी इसका किसी को खयाल तक न था। तेजस्वी वावलि इस कठिन प्रहार का बदला लिए विना कैसे रह सकते थे ? उन्हें ने पूरे जोर से मुट्ठी बाँधी और भरत पर प्रहार करने के लिए हाथ उठाया । लेगो के हृदयो मे हाहाकार मच गया और सबको ऐसा लगा कि भरत अब बच नही सकते । वाहुबलि को अपनी विजय पर विश्वास तो था पर प्रहार करते समय विजय की लालसा मे वे विवेक को न भूले । यदि वे दुर्बल होने तो क्रोध से अन्धे हो जाते। लेकिन उन्हे अपनी शक्ति का पूर्ण ज्ञान था । इसलिये उन्ह ने शीघ्र ही विजय प्राप्त करली। उन्होने क्रोध पर ही विजय प्राप्त करली । उन्होने सोचा-मेरी योग्यता और श्रेष्ठता तो सिद्ध हो ही चुकी है । अव भाई यदि राज्य-लिप्सा के कारण क्षुद्र बन गया है तो मै उसके साथ नीच क्या बनूं ? भाई को मार कर राज्य-सचालन करते हुए मैं प्रजा के सामने क्या आदर्श रखूगा ? जाने-दो ऐसे राज्य को और छोडो इस बन्धु-हत्या को।
जिम जोर से उन्होंने मुट्ठी बांधी थी उसी जोर से उसे खोलते हुए उन्होने केशलोच (अपने हाथ से सिर और शरीर के बाल उखाडना) किया और त्याग की दीक्षा ली। भरत निर्भय हो कर राज्य करने लगे और बाहुबलि ने