Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश और खास करके जीवविज्ञान बहुत कुछ वढा है और हम नई बुनियाद लेकर जीवविज्ञान वढा सकते है । तब पुराने, कालग्रस्त जीवविज्ञान से हम सतोष न माने । जो बुनियाद मजबूत नही है उसे छोड दे और वचन-प्रामाण्य एव पुराने धर्मकारो के अनुयायित्व से सतोप न मान कर आध्यात्मिक दृष्टि से नये-नये प्रयोग करने के लिए हम तैयार हो जाएँ।
इसके लिए पश्चिम की प्रयोगशालाओ से भिन्न अहिसा-परायण प्रयोगशालाओ की स्थापना करनी होगी। प्रयोग-वीर अध्यापक उसमे काम करेगे। सिद्धान्त और व्यवहार का समन्वय कर के मानव जाति के उत्कर्ष के लिए वे नसीहत देते जायेगे। उनकी नसीहत धर्म-पुरुपो की आज्ञा का स्प नही लेगी। जिसमे सत्यनिष्ठा है, अध्यात्मनिष्ठा है और अहिंसा की सार्वभौम दृष्टि जिसे मजूर है, उसके लिए अन्दरूनी प्रेरणा से जो बात मान्य होगी सो मान्य । हर एक जमाने के मानव-हितचिन्तक तटस्थ तपस्वियो की नसीहत ही धर्मजीवन के लिए अन्तिम प्रमाण होगी और अन्तिम प्राधार हृदय के सतोष का ही होगा। 'शुद्धहृदयेन हि धर्म जानाति ।' इसलिये केवल प्राचीन धर्मग्रथ और धर्मकारो के वचन से बाहर नही सोचने का स्वभाव छोडकर हमे वैज्ञानिक ढग से शुद्ध निर्णय पर आना होगा।
और, केवल आहार और आजीविका के साधन के क्षेत्र से अपने को मर्यादित न करके अहिंसा-जैसे सार्वभौम, सर्वकल्याणकारी सिद्धान्त का उपयोग
और विनियोग, युद्ध और शाति-जैसे जगत्व्यापी सवालो का सर्वोदयी हल हूँढने मे ऐसा करना जरूरी हो गया है। वशसघर्ष, वर्गसंघर्प आदि विश्वव्यापी भयानक संघों का निराकरण करके समन्वय की स्थापना करने के लिये अहिंसा की मदद कैसी हो सकती है, यह देखने के लिये ऋपि-तुल्य चिन्तन और विज्ञानवीरो की प्रयोग-परायणता एकत्र करनी होगी। ऐसा मिलान करने से ही सजीवनी विद्या प्राप्त होगी।
इस दिशा मे प्रारम्भ करना ही सब से महत्त्व की बात है । प्रारम्भ होने पर भगवान् की ओर से बुद्धियोग मिलेगा और योग्य व्यक्तियो का सहयोग तथा दिशा-दर्शन भी मिलेगा। पूर्व के और पश्चिम के मनीषियो ने आज तक जो चिन्तन किया है, अनुभव पाया है, और प्रयोग भी किये है, उनको एकत्र ला से भविष्य की दिशा स्पष्ट हो सकेगी। किसी ने ठीक ही कहा है कि प्राचीन की योगविद्या और आधुनिक काल की प्रयोग-विद्या दोनो के समन्वय से सत्ययु की और धर्मयुग की स्थापना हो सकेगी। यह समय ऐसे नये प्रस्थान का है १५ अप्रेल १९६३