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मर जाता है। अचानक इस जगत में कुछ भी नहीं होता है। हम प्रतिक्षण मर रहे हैं। हम प्रतिक्षण मरते जा रहे हैं, हमारा सब मरता चला जा रहा है, हम प्रतिक्षण अंधेरे में और मृत्यु में दबे जा रहे हैं। इस मृत्यु में और अंधेरे में दबता हुआ व्यक्ति अभय को उपलब्ध हो सकता है? कोई तलवार अभय न देगी। और जो हाथ में तलवार लिए खड़े हैं, वे भयभीत हैं, तलवार केवल इसकी ही सूचना देती है। किसी दिन शायद वक्त आए कि जिनकी तलवार हाथ में लिए हम तस्वीरें और मूर्तियां बना रहे हैं, लोग हंसें और समझें कि बहुत कमजोर, बहुत भयभीत रहे होंगे। जो भयभीत नहीं है, उसके हाथ में तलवार होने का कोई कारण नहीं है। जिनको हम बहादुर कहते हैं, वह केवल भय की ही एक परिणति है, भय का ही एक रूप है। मर्त्य के बोध के भीतर अभय असंभव है। जो मरने से डरा हो, जिसे मृत्यु दिख रही हो...और मैंने कहा कि हमारा सब तो मरण के करीब पहुंच रहा है। हमारे पास कुछ भी तो नहीं है, जो न मर जाएगा।
नानक एक गांव में ठहरे हुए थे, लाहौर में। एक व्यक्ति उनके पास बहुत बार आया, वर्षों आया। उसने अनेक बार नानक से कहा, मेरे सेवा योग्य कुछ मिल जाए, मैं कुछ आपकी सेवा कर सकू। नानक टालते गए कि मुझे तो कोई जरूरत नहीं, तुम्हारा प्रेम है, पर्याप्त है। प्रभु ने सब दिया है। एक दिन नानक ने कहा, तुम बहुत बार कहे, आज तुम्हारे लिए काम खोज लिया है। अपने कपड़े में छिपा रखी थी एक सुई कपड़े को सीने की, उस व्यक्ति को दी, इसे रख लो, मृत्यु के बाद मुझे वापस कर देना। काम खोजा ऐसा खोजा!
__वह आदमी घबड़ाया, एक क्षण सोचा, मृत्यु के बाद वापस कर देना? जब मृत्यु होगी तो मुट्ठी तो बंधी रह जाएगी सुई पर, लेकिन सुई साथ नहीं जा सकती है। रात भर चिंतित रहा, सुबह आकर नानक के पैरों पर गिर पड़ा और कहा कि क्षमा कर दें। मेरी कोई समृद्धि, मेरी कोई सामर्थ्य, मेरी कोई शक्ति मृत्यु के पार इस सुई को नहीं ले जा सकती। नानक ने पूछा, फिर तुम्हारे पास क्या है जिसे मृत्यु के पार ले जा सकते हो?
और क्या यही प्रश्न मैं आपसे न पूछं? और क्या यही प्रश्न प्रत्येक को सारे जगत में अपने से नहीं पूछ लेना है? एक न एक दिन क्या यह प्रश्न मृत्यु के वक्त खड़ा न हो जाएगा कि क्या है मेरे पास जो मैं ले जा सकता हूं? जिसके पास मृत्यु के पार ले जाने को कुछ भी नहीं है, वह अभय को कैसे उपलब्ध होगा? जिसे यह भी पक्का नहीं कि मैं भी बचूंगा उन लपटों के पार या नहीं, वह कैसे अभय को उपलब्ध होगा? जिसके पैर के नीचे सारी जमीन खिसकी जाती हो, जिसकी सारी मुट्ठियों की पकड़ किसी चीज को पकड़ाए न रखेगी, जिसके सब सहारे डूब जाएंगे, और मझधार में जिसकी नौका डूबनी ही है और कोई तट और किनारा जिसे न दिखता हो, वह कैसे अभय को उपलब्ध हो?
आत्म-ज्ञान के बिना अभय असंभव है।
महावीर ने कहा, जो अभय को उपलब्ध है, वही केवल अहिंसक हो सकता है। और अदभुत शर्त लगा दी, और उस शर्त में सारा भय इकट्ठा कर दिया। आत्म-ज्ञानी ही अभय को उपलब्ध हो सकता है, क्योंकि जो अपने को जानता है वह जानता है कि मृत्यु नहीं है। सब मरेगा, मैं नहीं मर सकता हूं। सब विसर्जित हो जाएगा, सब मिट जाएगा, भीतर जो चैतन्य सत्ता बैठी हुई है, उसकी मृत्यु नहीं है। जिस क्षण यह दर्शन होता है, जिस क्षण इस अमृत का दर्शन
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