Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 11
________________ से महाकवि बाण की कादम्बरी जैसी शैली में विरचित मनोहर दीर्घ कथा है। मुख्य कथा को बीच-बीच में अनेक अवान्तर कथाओं ने विस्तार का रूप प्रदान किया है। कथा इतनी रोचक और हृदयग्राही है कि उसे एक ही बैठक में पढ़ जाने को मन करता है। सम्पूर्ण कथाकृति को चार प्रस्तावों में विभाजित किया गया है। कृतिकार ने परम्परानुसार प्रारम्भ में मङ्गलाचरण करके कथा का उद्देश्य बताते हुए इसको संवेगजननी धर्मसंकीर्ण कथा का रूप दिया है। कथा का सारांश प्रस्तुत करके कथा प्रारम्भ की गयी है जो अन्त में चतुर्थ प्रस्ताव में समाप्त हुई है। अपने कथ्य को प्रभावी बनाने के लिए जहाँ इसमें क्रोध पर चण्डसोम, मान पर मानभट, माया पर मायादित्य, लोभ पर लोभदेव, मोह पर मोहदत्त आदि की अवान्तर कथायें दी गयी हैं वहीं व्रतदृष्टान्त, विनयदृष्टान्त, युगसमिलादृष्टान्त, परमाणुदृष्टान्त प्रभृति भी दृष्टान्त प्रस्तुत किये गये हैं। स्वनामधन्य उद्योतन सूरि जी को 'ही' नाम की देवी ने प्रसन्न होकर जो वृत्तान्त सुनाया था, वही इस "कुवलयमाला-कथा" में ग्रथित हुआ है। कालक्रम से अब संस्कृत भाषा भी सर्वसामान्य की दैनिक व्यवहार की भाषा न होकर कुछ पण्डित समाज तक ही सिमिट कर रह गयी। इस कारण प्राकृतभाषा से संस्कृत में रूपान्तरित कुवलयमाला कथा का लाभ जो संस्कृत से अनभिज्ञ हैं उनको भी मिले, इस दृष्टि से संस्कृत में रूपान्तरित कुवलयमाला का यह राष्ट्रभाषा हिन्दी में अद्वितीय रूपान्तरण तैयार कर प्रकाशित किया जा रहा है। वैसे भी विश्व की सभी भाषाओं में यह रूपान्तरित हो तो मानवमात्र को इससे अनिर्वचनीय लाभ होने की परम आशा है। आभार मेरे शिरश्छत्र पूज्य पाद श्रीयुत जिनमणिसागरसूरिजी महाराज के अमोघ शुभाशीर्वाद का ही सुफल है कि मैं साहित्य-यज्ञ में सम्मिलित हो सका, उन्हीं की अन्त:प्रेरणा से आज भी इस साहित्य-क्षेत्र में प्रवृत्त हूँ। इसके सम्पादन एवं रूपान्तरण में मेरे अनुजकल्प पण्डित नारायणशास्त्री काङ्कर जो कि राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित हैं, उन्होंने इसमें पूर्ण रस लेकर कुवलयमाला-कथा [IX]

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