Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 16
________________ [4] कुवलयमाला-कथा सिंह के डर से हाथी भाग जाते हैं, वे भगवान् तुम्हारे मोक्ष रूपी सुख का विस्तार करें। ___ कवि लोग जिस देवी की कृपा से अमूल्य और अविनश्वर तथा सुगुण में मनोहर काव्य रूपी वस्त्र की रचना करते हैं, वह सरस्वती देवी तुम्हारे मनोरथ को पूरा करे। जिन गुरु के गो-संग से ज्ञान रूपी कमल अवश्य खिल जाते हैं, उन अज्ञानरूपी अन्धकार के समूह को नाश करने वाले तथा दो प्रकार शारीरिक और आध्यात्मिक कान्ति से शोभायमान गुरु को मैं हर्ष के साथ प्रणाम करता हूँ। अर्थ के विस्तार रूपी सुगन्ध को सूंघने के लिए पण्डित रूपी भौरे जिसमें इकट्ठे हुए हैं, ऐसी कुवलय-कमल की माला की तरह यह कुवलयमाला नाम की कथा, इस कुवलय भूमण्डल में जयवन्ती होवे। पण्डितों के मन रूपी मानस-सरोवर में राजहंसी जैसी यह 'कुवलयमाला' नाम की कथा पहले-पहल श्री दाक्षिण्यचिह्न सूरि ने प्राकृत भाषा में रची थी। उसी को मैं (रत्नप्रभसूरि) चम्पू रूप से संस्कृत भाषा में रचता हूँ। विद्वान् लोग प्रसन्नता के साथ इसका अवलोकन करें। चार गतियों में उत्पन्न होने वाले पापों से भरे हुए इस अपार संसाररूपी समुद्र में घूमते-घूमते बड़ी कठिनाई से यह मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। उसमें भी पुरुषत्व बड़ा दुर्लभ है। इसलिए जिन पुरुषों को पुरुषत्व प्राप्त हुआ है उन्हें पुरुषार्थों में आदर करना चाहिए। पुरुषार्थ तीन प्रकार के हैं- धर्म, अर्थ और काम। तथा किसी-किसी पुरुष को मोक्ष नाम का चौथा पुरुषार्थ भी सिद्ध करने योग्य है। इन पुरुषार्थों रहित मनुष्य, चाहे वह कैसा ही सुन्दर हो, तो भी उसका जीवन जंगल में खिले हुए मालती के फूल की तरह वृथा है। इन पुरुषार्थों में एक धर्म पुरुषार्थ ही विशेष कल्याण करने वाला है। धर्म संसार में अनेक तरह का फैला हुआ है। किन्तु जैसे सब मणियों में कौस्तुभ मणि, हाथियों में ऐरावत हाथी, समुद्र में क्षीर समुद्र, मनुष्यों में चक्रवर्ती, वृक्षों में कल्पवृक्ष, पर्वतों में सुमेरु पर्वत और सब देवों में इन्द्र शोभित होता है, उसी प्रकार सब धर्मों में जिनेन्द्र भगवान् का कहा हुआ धर्म शोभित है। प्रथम प्रस्ताव

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