Book Title: Kruparaskosha
Author(s): Shantichandra Gani, Jinvijay, Shilchandrasuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 13
________________ HTTARA की प्रार्थना स्वीकार की और संवत् १६३८ के मार्गशिर वदि ७ के दिन गंधार बंदर से प्रस्थान किया। अहमदाबाद के श्रावक लोक सूरिजी के साथ ही चले। सूरिमहाराज, अपने मुनिधर्मानुसार, नंगे पांव-पैदल ही चलते थे । गंधार से चलकर, मही नदी को पार किया और * वटदल (जिसे आज कल वटादरा कहते हैं) नामक गाँव में पहुंचे। यहां पर खंभात (जो कि निकट ही था) का जैन समुदाय सूरिजी के दर्शनार्थ आया। दो चार दिन ठहर कर सूरिजी ने आगे प्रयाण किया और थोडे ही दिनों में अहमदाबाद पहुंचे। अहमदाबाद के लोकों ने उन का बडे भारी समारोह से नगर प्रवेश कराया। शहाबुद्दीन ने सूरिजी को शहर में आये सुन कर आदर के साथ उन्हें अपने शाहीमहल में बुलवाये । बहुत। से हाथी, घोडे तथा हीरा, माणिक्य, मोती आदि बहुमूल्य चीजें सूरिजी को भेट कर बोला कि - "हे साधु महोदय ! मुझे अपने स्वामी (अकबर) की आज्ञा है। कि- “हीरविजयसूरिजी को जो कुछ चाहे वह भेट कर उन्हें मेरे पास आने की। । प्रार्थना करें।" इस लिये, आप इन चीजों को ले कर जिस तरह बादशाह मुझ पर खुश रहें वेसा कीजिए।'' सूरीश्वर ने अपने मुनिजीवन का परिचय देते हुए खाँ से कहा किरक्षामो जगदङ्गिनो न च मृषावादं वदामः क्वचि नादत्तं ग्रहयामहे मृगदृशां बन्धूभवामः पुनः ।। आदध्मो न परिग्रहं निशि पुनश्निीमहि ब्रूमहे ज्योतिष्कादि न भूषणानि न वयं दध्मो नृपैतान्व्रतान् । हीरसौभाग्य, ११ सर्ग, १५० श्लोक। ___ "हे नृप । संसार मात्र के प्राणियों की हम रक्षा करते हैं, कभी भी झूठ नहीं बोलते, किसी के दिये विना हम कोई चीज हाथ में नहीं लेते, जगत् की सभी स्त्रियों के हम भाई समान हैं, सुन्ना, चाँदी, हीरा आदि बहुमूल्य वस्तु का हम स्वीकार नहीं करते, न कभी रात को कोई चीज मुंहमें डालते, न किसी | आभूषण को छूते हैं और नाही, अपने निर्वाह या स्वार्थ के कारण मंत्र, तंत्र या मुहूर्तादि बताते हैं । ऐसी दशामें तुमारी भेट की हुई इन चीजों को ले कर हम। AmalneKILL । क्रमाद् वटदले फुल्लाम्भोजे भृङ्ग इवागमत् । स्तंभतीर्थस्य सङ्घन तस्मिन्प्रभुरवन्धत ॥ हीरसौभाग्य, स. ११, श्लो. १०९ । MIRMIREN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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