Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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कातनायाकरणम्
११
९, ३६४
९३. आनन्दभुदाश्रयः २८५ ११८. उच्चैः
१२६ ९४. आपन्नजीविकः ३२७ ११९. उच्चैर्मुखः ९५. आपन्नदशाः ३४३ १२०. उच्चस्तमाम् ९६. आ पाटलिपुत्राद् १२१. उच्चस्तराम् ५२६ वृष्टो देवः
१३९ १२२. उच्छिन्नजनपदो देशः ३४३ ९७. आम्भसिकः ४५८ १२३. उञ्छिता २१४, २१६ ९८. आयुष्मान् ४८७ १२४. उत्तरेण हिमवन्तम् १४५ ९९. आग्नशस्त्रि ३७५ १२५. उत्तरो ग्रामात् । १४१ १००. आरूढवानरो वृक्षः ३४९ १२६. उदगात् कथकौथुमम् ३७५ १०१. आश्वपतः ४२१ १२७. उपकर्तृ १०२. आश्वमेधिको ब्रह्महत्यायाः ४५७ १२८. उपकुम्भम् १०३. आश्वो रथः ४४७ १२९. उपकुम्भे १०४. आसनात् प्रेक्षते ४१ १३०. उपकुम्भेन १०५. आसन्नदशा: ३४३ १३१. उपदशाः
३४३ १०६. आक्षिकाः ४५७ १३२. उपबाहविः
४३७ १०७. इ:
४३५ १३३. उपराजम् १०८. इतः
५०२ १३४. उपवधु १०९. इतरेयुः
५१९ १३५. उपाध्यायादधीते ११०. इतरो देवदत्तात् १४१ १३६. उपाध्यायादन्तर्धत्ते १११. इतिपाणिनि ३६५ १३७. उपाध्यायादागमयति ११२. इत्थम्
५०३,५२३ १३८. उपानत् ११३. इदानीम् ५०२,५१५ १३९. उपार्जुनं योद्धारः १५२ ११४. इयमस्याः पूर्वा दिक् १४१ १४०. उपावृत् ११५. इष्टकचितम् ४०५ १४१. उभयद्युः
५२० ११६. इह ५०२,५०९ १४२. उभयेयुः
५२० ११७. ईषिकतूलम् ४०५ १४३. उर:केण
५३०
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