Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 27
________________ आत्म-कमल-लब्धिसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः कर्मप्रकृति बंधनकरण सिद्धं सिद्धत्थसुयं, वंदिय निरोयसव्वकम्ममलं । कम्मट्ठगस्स करण?-मुदयसंताणि वोच्छामि ॥१॥ बंधण संकमणुव्वट्टणा य अववट्टणा उदीरणया । उवसामणा निहत्ती, निकायणा च त्ति करणाइं ॥ विरियंतरायदेसक्खयेण, सव्वक्खयेण वा लद्धी । अभिसंधिजमियरंवा, तत्तो विरियं सलेसस्स॥३॥ परिणामालंबणगहण-साहणं तेण लद्धनामतिगं । कजब्भासानोन्नप्पवेस-विसमीकयपएसं ॥४॥ अविभागवग्गफड्डग-अंतरठाणं अणंतरोवणिहा । जोगे परंपरवुड्डि, समयजीवप्पबहुगं च ॥५॥ पण्णाछेयणछिन्ना, लोगासंखेजगप्पएससमा । अविभागा एकेके, होति पएसे जहन्नेणं ॥६॥ जेसिं पएसाण समा, अविभागा सव्वतोय थोवतमा तेवग्गणा हन्ना, अविभागहिया परंपरओ॥७॥

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