Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala
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बंधनकरण
२३
जाणि असायजहन्ने,उदहिपुहुत्तं ति ताणि अन्नाणि। आवरणसमुप्पेवं, परित्तमाणीणमसुभाणं ॥६१॥ से काले सम्मत्तं, पडिवजंतस्स सत्तमखिईए । जो ठिइबंधो हस्सो, इत्तो आवरणतुल्लो य॥६२॥ जाअभवियपाउग्गा,उप्पिमसायसमया उ आ जेट्ठा एसा तिरियगतिदुगे, नीयागोए य अणुकड्डी ॥ तसबायरपजतग-पत्तेयगाण परघातुल्ला उ । जावट्ठारसकोडाकोडी, हेट्ठा य साएणं ॥६४॥ तणुतुल्ला तित्थयरे, अणुकड्ढी तिव्वमंदया एत्तो। सव्वपगईण नेया, जहन्नयाई अणंतगुणा ॥६५॥ निव्वत्तणा उ एकिकस्स, हेट्ठोवरिं तु जेट्ठियरे । चरमठिईणुक्कोसो, परित्तमाणीण उ विसेसो॥६६॥ ताणन्नाणि त्ति परं, असंखभागाहिं कंडगेकाण । उकोसियरा नेया, जा तकंडकोवरि समत्ती ॥६७॥ ठिइबंधट्ठाणाई, सुहुम अपजत्तगस्स थोवाइं । बायरसुहुमेयरबिति-चरिंदियअमणसन्नीणं ६८॥ संखेजगुणाणि कमा, असमत्तियरे य बिंदियाइम्मि नवरमसंखेजगुणाईं, संकिलेसाय सव्वत्थ ॥६९॥

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