Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 59
________________ ५० । यज्ञार्थं द्विजानामागमनम् [कल्पान्तर्वाच्यः अद्ध-तेरस-कोडी सुवण्ण-वुट्ठी कया य देवेहिं । इच्चाइ पंचदिव्वा संजाया तंमि समयंमि ।। ५५७॥ इत्थंतरंमि पत्तो धणलाभत्थी सयाणीओ राया। सक्को तं पडिसेहइ जस्सेसा देइ तस्स धणं ।। ५५८ ।। सिट्ठिस्स देइ सव्वं वुत्तंतं कहिय जाइ सट्ठाणं। चंदण-सम-सीयल-तणू चंदणा तेण साभिहिया॥ ५५६॥ सत्थे अबला भणिया पुण सबला इत्थिया मुंणेयव्वा । कुम्मास-बक्कलाओ लद्धं जीए पवर-नाणं ।। ५६०॥ दो चेव य छट्ठ सए अउणतीसे उवासिओ भयवं। न कयाइ निच्च-भत्तं चउत्थ-भत्तं च से आसी।। ५६१ ॥ बारस-वासे अहिए छटुं-भत्तं जहण्णयं आसी। सव्वं च तवोकम्मं अपाणयं आसी वीरस्स ॥ ५६२ ।। तिण्णि सया दिवसाणं अउणापण्णे य पारणा कालो। उक्कुडुय-निसिज्जाणं ठियपडिमाणं सए बहुए ॥ ५६३ ।। पव्वजाए दिवसं पढमे इत्थं तु पक्खिवित्ताणं । संकलियंमि उ संतं जं लद्धं तं निसामेह ।। ५६४ ॥ बारस चेव य, वासा मासा छ चेव अद्ध मासो उ। वीरवरस्स भगवओ एसो छउमत्थ-परियाओ।। ५६५॥ तह णं समणे भगवं महावीरे अरहा जाए, जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सदेव-मणुआसुरस्स लोगस्स परियायं जाणइ पासइ, सव्वलोए सव्वजीवाणं आगई, गई, ठिइं, चवणं, उववायं, तक्कं, मणो माणसियं भुत्तं, कडं पडिसेवियं, आवीकम्मं, रहोकम्म, अरहा, अरहस्स भागी, तं तं कालं मण-वयण-कायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ।। १२१॥ तत्थ कहित्ता धम्मं लाभाभावाओ एग-खण-मित्तं । जाइ अ पावा-पुरीए महसेण-वणंमि वीर-जीणो।। ५६६॥ जण्णत्थं मेलिया विप्पा सोमिलेण धिजेण ते। कुव्वंति जण्ण-कम्माणि सग्ग-मुक्ख-समीहिया ।। ५६७ ।।

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