Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 84
________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] भद्रबाहुः संभूतिविजयश्च पेसिय साहु-दुगेणं पुट्ठो भट्टो न याणसी तत्तं । आओसिय-जण्णियेणं कीलाहो दंसिया पडिमा ॥ ८६६ ॥ पासिय-संति-जिणंदं पडिबुद्धो दिक्खिओ य पभवेणं । तीसं वासा गेहे पण्णासं दिक्ख परियाए ।। ८७० ॥ वासाणमसीइ सव्वं पालित्ता आउयं पयं दाउं । सिजंभवस्स पभवो पत्तो सग्गालयं पच्छा ।। ८७१ ॥ सिरि-सिजंभव-सूरी नियपुत्तत्थं निजूहए पवरं । सिरिदसवेयालीयं मूलसुत्तं गुणगरिहं ॥। ८७२ ॥ सिजंभवं गणहरं जिणपडिमादंसणेण पडिबुद्धं । मणगपियरं दसकालियस्स निज्जूहगं वंदे ॥ ८७३॥ मणगं पडुच्च सिज्झं भवेण निज्झहिया सिज्झयणा । वेयालिया य ठविया तमहादस वेयालियं नाम || ८७४ || छहिं मासेहिं अहियं अज्झयणभिणं तु अज्झमणगेणं । छम्मासा परिआओ अह कालगओ समाहीए ॥ ८७५ ॥ आणंद सुप्पायं कासि सिज्झं भवा तहिं थेरा । जसभहस्स पुच्छा कहणा अविआलणा संघे ॥ ८७६ ॥ सिरिजसोभद्द-सूरिं नियपट्टे ठाविऊण सुरवासं । सिजंभव - गुरुपत्तो वीरा अडनवइ - वरिसंते ।। ८७३ ॥ जसोभद्दस्स त्ति..... स्थविरावली सूत्रांक- ५ जसोभद्दस्स सीसा भद्दबाहु-संभूइविजय गुरू । पट्टा-पुरि वराहमिहिर-भद्दबाहु-विप्पसुया ॥ ८७४ ॥ भबाहु-पय- दाणा रुट्ठो य वराहमिहिरओ ताहे । दिय-वेसो य वराही - संहियं किच्चा निमित्तेहिं ॥। ८७५ ॥ जीवइ अण्ण-दिमि रण्णो पुरओ य मंडलं लिहियं । बावण्ण-पल-पमाणय-मच्छ-पडणं तहिं कहियं ॥ ८७६ ॥ सुच्चा सिरिभद्दबाहू सढेगावण-पल-पमाणं च । कहियं तो तप्पडणं तावइयं चेव संजायं ॥ ८७७ ॥ तह रायसुयस्साऊ वाससयं तेण भासियं रण्णो । सत्त-दिणाणि गुरूहिं बिडालियाओ य से मरणं ॥ ८७८ ॥ * [ ७५

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