Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 12
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजुगमंधर भेटवा रे, अंतिः जिनसागर० अविचल राज, गाथा ६. ३. पे. नाम. सामान्य जैन कृति संग्रह. पू. १ आ. संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५१८५८. स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्रले. मु. उदयचंद्र पठ मु हयकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४११, १३x२३).
१. पे. नाम. पदमनाभतिर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
पद्मनाभजिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्म, वि. १८४६, आदि: जंबूद्वीपना भरतक्षेत अंति: जैमल० लील विलास, गाथा १५.
२. पे. नाम. चौद गुणस्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक नाम, मा.गु, गद्य, आदि: मिध्यात्व१ सास्वादन: अंतिः केवली अजोगिकेवली.
३. पे. नाम. बीस विहरमान नाम पू. १आ, संपूर्ण.
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२० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर, अंति: १९ अजितवीर्य २०. ५१८५९. विंशति स्थानक नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, प्रले. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे..
(२५X११, १२X३४).
१. पे. नाम. विंशतिस्थानकनाम गर्भित नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण.
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२० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि पहेले पद अरिहंत नमः अंतिः नमतां होय सुख खाणी, गाथा ५.
२. पे. नाम. विंशति स्थानक काउसग्गगर्भित नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप काउसरण चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९९वी, आदि: चोवीस पन्नर, अंति: नमी निज कार साधे, गाथा-५.
५१८६०. (4) पार्श्व जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१०.५,
११×३९).
पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंदा हो साहिब, अंति: राजरत्न० काज सुखाकर, गाथा- १०. ५१८६१. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, १३X३३).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: जय हंसासणी शारदा, अंति: नय० आनंद अति घणो, ढाल - २, गाथा - २०.
५१८६२. रहनेमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, ९X३१).
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसण ध्याने मुनिः अंतिः रूपविजय० देहरे, गाथा-८. ५१८६३. मांन विखंडन गीत, संपूर्ण, वि. १८१४, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. भाउ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे.,
(२५X१०.५, १२X३२).
मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न करिज्यो रे मान, अंति: मुक्ति सुख लेय रे, गाथा-२०.
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गुहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२५.५x११,
१३X३६).
१. पे नाम औपदेशिक गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर मारगमां वसिया, अंतिः श्रीशुभवीर चरण नमती,
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गाथा - ९.
२. पे नाम. गुरुगुण गुहली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
गुरुगुण भास, आ. विजयमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सखि संयममां रमता, अंतिः महेंद्रसूरि सुख पावे, गाथा-७. ५१८६५. (+) हितोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे.,
(२४४१०.५, १७x४२-४६).

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