Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 12
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 477
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६० www.kobatirth.org पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य, अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ५१९४६. (#) साधुपाक्षिक अतिचार व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३७, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. मु. अनोपचंद साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११.५, १३x२९). १. पे. नाम. साधु पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५१९४७ (४) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५४१०.५, १२X४०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: गारेण वोसिरामि. २. पे. नाम. मुहपत्ती बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण साधुपाक्षिक अतिचार छे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंति: हुआइ होय ते सवि०. ५१९४८. (#) दश पच्चक्खाण सूत्र व मुहपति बोल, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. सीरोही, प्रले. मु. लालचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११.५, १२X३३). १. पे. नाम. दश पचक्खाण, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: प्रथम दृष्टि पडिलेहण, अंति: ५ त्रसका ६ जेणी करु. ५१९४९. (#) ऋषिभाषित कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५. ६४३५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि लोभीवा मनुष्य अर्धन, अंतिः सेव्याथी सुख पामीजइ. ५१९५०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १२-१७x४३). १. पे नाम वीर स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन छट्टाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी, अंतिः देवीदास० संघमंगल करो, ढाल - ५, गाथा-६६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु, पद्य, आदि ध्यान धर्यो प्रभु पह अंतिः नव नीधी रीधी धनपावै, गाथा-८. ५१९५१. (+) चउवीस दंडक विचार, संपूर्ण, वि. १८४९ ज्येष्ठ कृष्ण १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, सुरतिबंदर, पठ. मु. किसनचंद (गुरु पंन्या. केसरविजय); गुपि. पंन्या. केसरविजय (गुरु मु. सुमतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५.५x१२ १२४३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा ४४. ५१९५२. (+) अध्यात्म गीता, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५x११.५, ११x४२). For Private and Personal Use Only अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमियै विश्वहित, अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४८. ५१९५३. (४) जिनकुशलसूरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, " 1 १२X३४). जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदिः श्रीमज्जिनाधीश, अंति: गणैः संसेव्यमानः सदा, श्लोक-२२.

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